यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८
भूमिका।
१५-पारियात्र
२३-कौशल्य
 
१६-शिल
२४-ब्रमिष्ट
 
१७-उन्नाम
२५-पुत्र
 
१८-वज्रनाभ
२६-पुष्य
 
२७-ध्रुवसन्धि
 
२०-व्युषिताश्व
२८-सुदर्शन
 
२१ – विश्वसह
२९-अग्निवर्ण
 
२२-हिरण्यनाभ
 

इनमें से रघु और रामचन्द्र का चरित्र कवि ने बड़े विस्तार से लिखा है । रामचन्द्र के लिए तो कालिदास ने दसवें सं लेकर पंद्रहवें सर्ग तक,६.सर्ग,खर्च किये हैं। दिलीप,अज,दशरथ,कुश और अतिथि का चरित भी अच्छा लिखा है । परन्तु निषध से लेकर ध्रुवसन्धि तक का चरित,जो अठारहवें सर्ग में है,बहुत ही संक्षिप्त है। उसमें प्रत्येक के लिए एक ही दो पद्य हैं । चरित क्या है,राजाओं की नामावली मात्र है । जान पड़ता है, इन राजाओं के राजत्व-काल में अयोध्या की दशा अच्छी न थी और इन लोगों ने कोई महत्व के काम नहीं किये। इसी से इनके चरित की विशेष सामग्री कालिदास को उपलब्ध नहीं हुई । अठारहवें सर्ग के अन्त में बालक-नरेश सुदर्शन की वाल्यावस्था का वर्णन दस पाँच पद्यों में करके उन्नीसवें सर्ग में कालिदास ने अग्निवर्ण की कामुकता का वर्णन किया है और उस सर्ग की समाप्ति के साथही पुस्तक की भी समाप्ति कर दी है। जिस समय अग्निवर्ण राजयक्ष्मा रोग से मरा उस समय उसकी प्रधान रानी गर्भवती थी। अग्निवर्ण के मंत्रियों ने उसी को सिंहासन पर बिठा कर अयोध्या की अनाथ प्रजा को सनाथ किया । बस,यहीं तक का वृत्तान्त लिख कर कालिदास चुप हो गये हैं । न उन्होंने अगले राजाओं ही का कुछ हाल लिखा और न रघुवंश की समाप्ति के सम्बन्ध ही में कुछ कहा । इसका यथार्थ कारण अनुमान द्वारा जानना बहुत कठिन है। रघुवंश के हिन्दी-अनुवाद।

जहाँ तक हमें मालूम है,इस समय हिन्दी में रघुवंश के चार अनुवाद विद्यमान हैं। उनमें से दो पद्य में हैं,दो गद्य में । पहला पद्यबद्ध अनुवाद