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रघुवंश।


ही उसके राज्य में उससे भी कोई बात छिपी न रहो। जहाँ कहाँ जो कुछ हुआ सब उसको ज्ञात हो गया।

राजनीति और धर्मशास्त्र में जिस घड़ो जो काम करने की आज्ञा राजाओं को है वह काम उसने उसी घड़ी किया। चाहे रात हो चाहे दिन, जिस समय का जो काम था उसी समय उसने कर डाला। इस नियम मैं कभी उससे त्रुटि न होने पाई।

मन्त्रियों के साथ यद्यपि वह प्रति दिन मन्त्रणा करता था-यद्यपि कोई दिन ऐसा न जाता था कि वह अपने मन्त्रियों के साथ गुप्त विचार न करता हो-तथापि, गुप्त मन्त्रणाओं के सम्बन्ध में प्रति दिन परस्पर विचार और वाद-विवाद होने पर भी, उनका लवलेश भी बाहर के लोगों को न मालुम होता था। बात यह थी कि मन्त्रणाओं के बाहर निकलने के द्वार उसने बड़ी ही दृढ़ता से बन्द कर दिये थे। उसने प्रबन्ध ही ऐसा कर दिया था कि उसकी गुप्त बातें मन्त्रियों के सिवा और किसी को मालूम न हो।

अनेकों जासूस जो उसने रख छोड़े थे उनमें यह विशेषता थी कि उन्हें एक दूसरे का कुछ भी हाल न मालूम था। उनका काम शत्रुओं की खबर रखनाही न था, मित्रों की भी खबर रखने की उन्हें आज्ञा थी। अतिथि को उनसे शत्रुओं और मित्रों, दोनों, का क्षण क्षण का हाल मालूम हो जाता था। सोने के समय अतिथि प्रानन्द से सोता ज़रूर था; परन्तु उस समय भी वह अपने जासूसों की बदौलत जागा हुआ हो सा रहता था। क्योंकि, उसके सोते समय जो घटनायें होती थीं उनकी भी रिपोर्ट उस तक पहुँच जाती थी।

शत्रुओं पर आक्रमण करने की उसमें यथेष्ट शक्ति थी। वह किसी बात में निर्बल न था। परन्तु, फिर भी, उसने बड़े बड़े दृढ़ किले बनवाये थे। उन्हीं में वह रहता था। इसका कारण भय न था। हाथियों के मस्तक विदीर्ण करनेवाला सिंह क्या भय से थोड़े ही गिरि-गुहा के भीतर सोता है ? वह तो उसका स्वभावही है। इसी तरह किले बनवाना और उनमें रहना अतिथि का स्वभावही था। डर से वह ऐसा न करता था।

जितने काम वह करता था खूब सोच समझ कर करता था। काम भी वह वही करता था जिनसे उसे विश्वास हो जाता था कि सुख, समृद्धि