यमुना नामक दो पत्नियों के इस सङ्गम में स्नान करने वाले देहधारियों की आत्मा पवित्र हो जाती है और तत्त्वज्ञान की प्राप्ति के बिनाही उन्हें जन्ममरण के फन्दे से छुट्टी मिल जाती है। वे सदा के लिए देहबन्धन के झंझट से छूट जाते हैं।
"यह निषादों के नरेश का वह गाँव है जहाँ मैंने सिर से मणि उतार कर जटा-जूट बाँधे थे और जहाँ मुझे ऐसा करते देख सुमन्त यह कह कर रोया था कि-'कैकेयी ! ले, अब तो तेरे मनोरथ सिद्ध हुए!
"आहा ! यहाँ से तो सरयू देख पड़ने लगी । वेद जिस तरह बुद्धि का प्रधान कारण अव्यक्त बतलाते हैं उसी तरह बड़े बड़े विज्ञानी मुनि इस नदी का आदि-कारण- इसका उद्गम स्थान-ब्रह्मसरोवर बतलाते हैं-वह ब्रह्मसरोवर जिसमें खिले हुए सुवर्ण-कमलों की रज, स्नान करते समय, यतों की स्त्रियों की छाती में लग लग जाती है। इसके किनारे किनारे यक्षों के न मालूम कितने यूप-नामक खम्भे गड़े हुए हैं। अश्वमेध-यज्ञ समाप्त होने पर,अव- भृथ-नामक स्नान कर के, इक्ष्वाकुवंशी राजाओं ने इसके जल को और भी अधिक पवित्र कर दिया है। ऐसी पुण्यतोया यह सरयू अयोध्या-राजधानी के पासही बहती है । इसकी बालुकापूर्ण-तटरूपी गोद में सुख से खेलने और दुग्धवत् जल पीकर बड़े होने वाले उत्तरकोसल के राजाओं की यह धाय के समान है। इसी से मैं इसे बड़े आदर की दृष्टि से देखता हूँ। मेरे माननीय पिता के वियोग को प्राप्त हुई मेरी माता के समान यह सरयू , चौदह वर्ष तक दूर देश में रहने के अनन्तर मुझे अयोध्या को आते देख, वायु को शीतलता देने वाले अपने तरङ्गरूपी हाथों से मेरा आलिङ्गन सा कर रही है।
"सन्ध्या के समान लालिमा लिये हुए धूल सामने उड़ती दिखाई दे रही है । जान पड़ता है, हनूमान् से मेरे आगमन का समाचार सुन कर, सेना को साथ लिये हुए भरत, आगे बढ़ कर, मुझसे मिलने आ रहे हैं। वे पूरे साधु हैं । अतएव, मुझे विश्वास है कि प्रतिज्ञा का पालन करके लौटे हुए मुझे वे निज-रक्षित राजलक्ष्मी को उसी तरह अछूती सौंप देंगे जिस तरह कि युद्ध में खर-दूषण आदि को मार कर लौटे हुए मुझे लक्ष्मण ने तुझे सौंपा था।