पुष्पपुर लिखा है। यह पटना (पाटली-पुत्र) का प्राचीन नाम है। क्या ईस्वी सन् के चौथे और पाँचवे शतक में भी पुष्पपुर ही मगध की राजधानी था ? यदि नहीं, तो इससे कालिदास का द्वितीय चन्द्रगुप्त के समय में होना नहीं सिद्ध होता। अस्तु।
कालिदास के समयनिरूपण के सम्बन्ध में विद्वानों की जो सम्मतियाँ हैं उनमें से प्रधान प्रधान का उल्लेख यहाँ किया गया। अब इनमें से पाठकों को जो विशेष मनोनीत हो उसे वे स्वीकार कर सकते हैं।
'कालिदास की जन्मभूमि।'
कालिदास के काव्यों को ध्यानपूर्वक पढ़ने से यह मालूम होता है कि वे काश्मीर के रहने वाले थे। मेघदूत में उन्होंने उज्जेन और विदिशा से अलका तक का आँखों देखा सा वर्णन किया है। उसे पढ़ते समय ऐसा जान पड़ता है कि जिन पर्वतों, नदियों, नगरों और देवस्थानों आदि का उल्लेख उन्होंने किया है उनसे उनका प्रत्यक्ष परिचय था। कुमार- सम्भव में हिमालय का जो वर्णन है उससे भी यही अनुमान होता है। साहित्याचार्य पण्डित रामावतार पाण्डेय, एम० ए०, का भी यही अनुमान है। उन्होंने इस अनुमान की पुष्टि में विक्रमाङ्कदेवचरित से बिल्हण का यह श्लोक उद्धृत किया है:--
सहोदराः कुङ्क मकेसराणां भवन्ति नूनं कविताविलासाः।
न शारदादेशमपास्य दृष्टस्तेषां यदन्यत्र मया प्रहः॥
अर्थात् केसर और कविता-विलास काश्मीर में सहोदर की तरह उत्पन्न होते हैं। यदि बाण जैसे गद्य-काव्य-प्रणेता और कालिदास जैसे पद्य-रचना-निपुण महाकवि काश्मीर के निवासी न होते तो बिल्हण को ऐसी गॉक्ति कहने का साहस न होता।
जान पड़ता है कि कालिदास प्रौढ़ वय में उज्जेन आये, क्योंकि कुमार- सम्भव और मालविकाग्निमित्र में, जो उनकी युवावस्था के ग्रन्थ हैं, उज्जेन-सम्बन्धिनी कोई बाते नहीं हैं। पर मेघदूत में सिप्रा, विदिशा और उज्जेन के मन्दिर, प्रासाद और उद्यान आदि का ऐसा अच्छा वर्णन है जैसे उन्होंने उनको प्रत्यक्ष देखा हो।