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रघुवंश।


से सीता को इस तरह हर लिया जिस तरह कि पर्जन्य का प्रतिबन्ध कारण सावन और भादों के बीच से वर्षा को हर लेता है। राम-लक्ष्मण ने उसे अपने भुज-बल से बेतरह पीस कर मार डाला। परन्तु उसकी लाश को उन्होंने वहीं पड़ी रहने देना मुनासिब न समझा। उन्होंने कहा कि यदि यह इस तरह पड़ी रहेगी तो इसकी अपवित्र दुर्गन्धि से आश्रम की भूमि दूषित हो जायगी। अतएव उन्होंने उसे ज़मीन में गाड़ दिया।

महर्षि अगस्त्य ने रामचन्द्र को सलाह दी कि अब आप पञ्चवटी में जाकर कुछ दिन रहें। रामचन्द्र ने उनकी आज्ञा को सिर पर धारण करके पञ्चवटी के लिए प्रस्थान किया। ऊपर, आकाश की ओर, बढ़ना बन्द करके विन्ध्याचल जिस तरह अगस्त्य की आज्ञा से अपनी मामूली उँचाई से आगे न बढ़ा था-अपनी मर्यादा के भीतर ही रह गया था उसी तरह मुनि की आज्ञा से रामचन्द्रजी भी लोक और वेद की मर्यादा का उल्लंघन न करके पञ्चवटी में वास करने लगे।

वहाँ एक विलक्षण घटना हुई। रावण की छोटी बहन, जिसका नाम शूर्पणखा था, रामचन्द्र की मोहिनी मूर्ति देख कर उन पर आसक्त हो गई। अतएव, ग्रीष्म की गरमी की सताई नागिन जैसे चन्दन के वृक्ष के पास दौड़ जाती है वैसे ही वह भी अपना शरीरज सन्ताप शमन करने के लिए रामचन्द्र के पास दौड़ गई। जिस समय वह गई सीताजी भी रामचन्द्र के पास मौजूद थीं। परन्तु शूर्पणखा ने उनके सामने ही रामचन्द्र से कहा कि कृपा करके आप मुझसे शादी कर लीजिए। बात यह है कि मानसिक उत्कण्ठा की मात्रा विशेष बढ़ जाने से स्त्रियों को समय असमय का ज्ञान नहीं रहता। उनकी विवेक-बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।

विवाह करके पति प्राप्त करने की इच्छा रखनेवाली उस निशाचरी से, बलीवर्द के समान मांसल कन्धोंवाले रामचन्द्र ने कहाः-"बाले! मेरा तो विवाह हो चुका है; मैं तो पहले ही से कलत्रवान हूँ। अब मैं दूसरी स्त्री के साथ कैसे विवाह करूँ ? तू मेरे छोटे भाई लक्ष्मण के पास जा और उन पर अपनी इच्छा प्रकट कर।" इस पर वह लक्ष्मण के पास गई, तो उन्होंने भी उसका मनोरथ सफल न किया। वे बोले:-"मैं छोटा हूँ, रामचन्द्रजी बड़े हैं। और, तू पहले मेरे बड़े भाई के पास गई। इस कारण