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दसवाँ सर्ग।

चन्द्रमा एक ही है । परन्तु, भिन्न भिन्न जगहों में भरे हुए निर्मल जलों में, उसके अनेकों प्रतिबिम्ब देख पड़ते हैं। इसी तरह सर्वव्यापी भगवान् भी यद्यपि एकही हैं, तथापि, उन्होंने अपनी आत्मा के अनेक विभाग करके, एक एक अंश से, राजा दशरथ की एक एक रानी की कोख में, निवास किया । निदान दस महीने राजा की प्रधान रानी के पुत्र हुआ। रात के समय दिव्य ओषधि जैसे अन्धकार को दूर करनेवाला प्रकाश उत्पन्न करती है वैसे ही सती कौसल्या ने तमोगुण का नाश करनेवाला पुत्र उत्पन्न किया । बालक बहुत ही सुन्दर हुआ। उसके अत्यन्त अभिराम शरीर को देख कर पिता ने तदनुसार उसका नाम 'राम रक्खा । इस नाम को संसार में सबसे अधिक मङ्गलजनक समझ कर सभी ने बहुत पसन्द किया। यह बालक रघु-कुल में दीपक के सदृश हुआ । उसके अनुपम तेज के सामने सौरी-घर के सारे दीपक मन्द पड़ गए । उनकी ज्योति क्षीण हो गई। प्रसूति के अनन्तर रामचन्द्र की माता के शरीर की गुरुता घट गई। वह दुबली हो गई। सेज पर सोते हुए राम से वह ऐसी शोभायमान हुई जैसी कि तट पर पड़े हुए पूजा के कमल-फूलों के उपहार से शरद् ऋतु की पतली पतली गङ्गा शोभायमान होती है।

कैकेयी से भरत नामक बड़ा ही शीलवान पुत्र उत्पन्न हुआ । विनय ( नम्रभाव ) से जैसे लक्ष्मी (धनसम्पन्नता ) की शोभा बढ़ जाती है वैसे ही इस नव-जात पुत्र से कैकेयी की शोभा बढ़ गई। जो विशेषता विनय से लक्ष्मी में आ जाती है वही विशेषता भरत के जन्म से कैकेयी में भी आ गई।

अच्छी तरह अभ्यास की गई विद्या से जैसे प्रबोध और विनय, इन दो, गुणों की उत्पत्ति होती है वैसे ही सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न नाम के दो जोड़िये पुत्रों की उत्पत्ति हुई।

भगवान् के जन्म ने सारे संसार को मङ्गलमय कर दिया । दुर्भिक्ष और अकाल-मृत्यु आदि आपदायें न मालूम कहाँ चली गई। सम्पदाओं का सर्वत्र राज्य हो गया । पृथ्वी पर आये हुए भगवान् पुरुषोत्तम के पीछे वर्ग भी पृथ्वी पर उतर सा आया। रावण के भय से दिशाओं के स्वामी, दिक्पाल, काँपते थे । जब स्वामियों ही की यह दशा थी तब दिशाओं की