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नवाँ सर्ग।

उन्होंने सब तैयारी कर रक्खी । वह जगह भी शिकार के सर्वथा योग्य थी। पानी की कमी न थी। जगह जगह पर जलाशय भरे हुए थे और पहाड़ी झरने बह रहे थे। ज़मीन भी वहाँ की खूब कड़ी थी; घोड़ों की टापों से वह फूट न सकती थी। हिरन, पक्षी और सुरागायें भी उसमें खूब थौं । सभी बातों का सुभीता था ।

सुनहली बिजली की प्रत्यञ्चा वाले पीले पीले इन्द्रधनुष को जिस तरह भादों का महीना धारण करता है उसी तरह सारी चिन्ताओं से छूटे हुए उस राजा ने, उस जगह पहुँच कर, प्रत्यञ्चा चढ़ा हुआ अपना धनुष धारण किया। उसे हाथ में लेकर उस नर-शिरोमणि ने इतने ज़ोर से टङ्कार किया कि गुफाओं में सोते हुए सिंह जाग पड़े और क्रोध से गरजने लगे।

वह कुछ दूर वन में गया ही था कि सामने ही हिरनों का एक झुण्ड दिखाई दिया। उस झुण्ड के आगे तो गर्व से भरे हुए कृष्णसार नामक बड़े बड़े हिरन थे; पीछे और जाति के हिरन । वे, उस समय, चरने में लगे हुए थे। अतएव उनके मुँहों में घास दबी हुई थी। कुंड में कितनी ही नई ब्याई हुई हरिनियाँ भी थीं । वे सब चरने में लगी थीं। उनके बच्चे बार बार उनके थनों में मुँह लगा लगा कर उनके चलने-फिरने और चरने में विघ्न डाल रहे थे। हरिनियों को चरने की धुन थी, बच्चों को दूध पीने की। इस झुण्ड को देखते ही राजा ने अपने तेज़ घोड़े को उसकी तरफ़ बढ़ाया और तूणीर से बाण खींच कर धन्वा पर रक्खा । घोड़े पर उसे अपनी तरफ आते देख हिरनों में हाहाकार मच गया । वे जो पाँत बाँधे चर रहे थे वह पाँत उनकी टूट गई । जिसे जिस तरफ़ जगह मिली वह उसी तरफ़ व्याकुल होकर भागा । उस समय आंसुओं से भीगी हुई उनकी भयभीत दृष्टियों ने-मानों पवन के झकोरे हुए नील कमल की पंखुड़ियों ने उस सारे वन को श्याम- तामय कर दिया।

इन्द्र के समान पराक्रमी दशरथ ने उन भागते हुए हिरनों में से एक पर शर-सन्धान किया । उस हिरन की हिरनी भी उस समय उसके साथ ही थी । हिरनी ने देखा कि राजा मेरे पति को अपने बाण का निशाना बनाना चाहता है । अतएव वह वहीं खड़ी हो गई और हिरन को अपनी .