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नवाँ सर्ग।

दशरथ से शत्रुता करने वाले हज़ारों राजाओं की रानियाँ विधवा हो गई। उन बेचारियों का वाल-गूंथना और शृङ्गार करना बन्द हो गया। उन्होंने अपने छोटे छोटे कुमारों को,अपने मन्त्रियों के साथ, राजा दशरथ की शरण में भेजा । मन्त्रियों ने उनके हाथों की असली बाँध कर उन्हें राजा के सामने खड़ा किया। राजा को उन अल्पवयस्क राजकुमारों और उनकी माताओं पर दया आई । अत एव उन्हें अभयदान देकर वह महासागर के किनारे से आगे न बढ़ा और अलकापुरी के सदृश समृद्धि-शालिनी अपनी राजधानी को लौट आया।

समुद्र-तट तक के राजाओं को जीत कर यद्यपि वह चक्रवर्ती राजा हो गया, तथापि उसके एक-च्छत्र राजा हो जाने से और किसी राजा को अपने ऊपर सफेद छत्र धारण करने का अधिकार न रहा,और कान्ति में यद्यपि वह अग्नि और चन्द्रमा की बराबरी करने लगा, तथापि उसने आलस्य को अपने पास न फटकने दिया । बड़ी मुस्तैदी से वह प्रजा-पालन और देश-शासन करने लगा। उसने कहा :-"इस लक्ष्मी का विश्वास करना भूल है। कहीं ज़रा सा भी छेद पाने से कुछ भी बहाना इसे मिल जाने से -यह फिर नहीं ठहरती। अतएव अपना कर्त्तव्य-पालन सावधानतापूर्वक करना चाहिए । ऐसा न हो जो यह आलस ही को छिद्र (दोष)समझ कर मुझ से रूठ जाय । अतएव मुझे छोड़ जाने के लिए मैं इसे मौका ही न दूंगा।" परन्तु दशरथ का यह सन्देह निमूल था। क्योंकि कमलासना लक्ष्मी पतिव्रता है। इस कारण याचकों का आदर-सत्कार करके मुंहमाँगा धन देने वाले उस ककुत्स्थवंशी राजा, और विष्णु भगवान्, को छोड़ कर और था ऐसा कौन जिसकी सेवा करने के लिए वह उसके पास जा सकती ? लक्ष्मी की की हुई सेवा का सुख उठाने के पात्र उस समय,विष्णु और विष्णु के समकक्ष दशरथ ही थे, और कोई नहीं।

अपना राज्य दृढ़ कर चुकने पर दशरथ ने विवाह किया। पर्वतों की बेटियाँ नदियों ने सागर को जिस तरह अपना पति बनाया है उसी तरह मगध,कोशल और केकय देश के राजाओं की बेटियों ने, शत्रुओं पर बाणवर्षा करने वाले दशरथ को, अपना पति बनाया । अपनी उन तीनों प्रियसमा रानियों के साथ वह ऐसा मालूम हुआ जैसे प्रजा की रक्षा के लिए