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भूमिका।


सदी में, संस्कृत भाषा का पुनरुज्जीवन होने पर, वैसी कविता का प्रादुर्भाव हुआ था। इन सब बातों को मजूमदार महाशय मानते हैं। पर यशोधा के समय में कालिदास का होना नहीं मानते। वे कहते हैं कि रघुवंश में जो इन्दुमती का स्वयंवर-वर्णन है उसमें उज्जेन के राजा का तीसरा नम्बर है। यदि कालिदास यशोधा के समय में, या उसकी सभा में, होते तो वे कभी ऐसा न लिखते। क्योंकि यशोधर्म्मा उस समय चक्रवर्ती राजा था। मगध का साम्राज्य उस समय प्रायः विनष्ट हो चुका था। यशोधर्म्मा मगध की अधीनता में न था। अतएव, मगधाधिप के पास पहले और उज्जेननरेश के पास उसके बाद इन्दुमती का जाना यशोधर्म्मा को असह्य हो जाता। अतएव इस राजा के समय में कालिदास न थे। फिर किसके समय में थे ? बाबू साहब का अनुमान है कि कुमार-गुप्त के शासन के अन्तिम भाग में उन्होंने ग्रन्थरचना प्रारम्भ की और स्कन्दगुप्त की मृत्यु के कुछ समय पहले इस लोक की यात्रा समाप्त की। इस अनुमान की पुष्टि में उन्होंने और भी कई बातें लिखी हैं। आपका कहना है कि रघुवंश में जो रघु का दिग्विजय है वह रघु का नहीं, यथार्थ में वह स्कन्दगुप्त का दिग्विजय वर्णन है। आपने रघुवंश में गुप्तवंश के प्रायः सभी प्रसिद्ध प्रसिद्ध राजाओं के नाम ढूंढ़ निकाले हैं। यहाँ तक कि कुमारगुप्त को खुश करने ही के लिए कालिदास के द्वारा कुमारसम्भव की रचना का अनुमान आपने किया है। इसके सिवा और भी कितनी ही बड़ी विचित्र कल्पनाये आपने की हैं। इनके अनुसार कालिदास ईसा की पाँचवीं सदी में विद्यमान थे।

कुछ समय से साहित्याचार्य पाण्डेय रामावतार शर्मा भी इस तरह की पुरानी बातों की खोज में प्रवृत्त हुए हैं। आपने भी इस विषय में अपना मत प्रकाशित किया है। आपकी राय है कि कालिदास द्वितीय चन्द्रगुप्त और उसके पुत्र कुमारगुप्त के समय में थे। यह खबर जब मजूमदार बाबू तक पहुँची तब उन्होंने माडर्न-रिव्यू में वह लेख प्रकाशित किया जिसका उल्लेख ऊपर हो चुका है। उसमें आप कहते हैं कि कालिदास का स्थितिकाल ढूँढ़ निकालने का यश जो पाण्डेय जी लेना चाहते हैं वह उन्हें नहीं मिल सकता। उसके पाने का अधिकारी अकेला मैं ही हूँ। क्योंकि इस आविष्कार को मैंने बहुत पहले किया था। पाण्डेय जी कहते हैं कि जो