यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७५
पाँचवाँ सर्ग।

साये । फिर,अपने दाँतों की चमक से अपने हृदय पर पड़े हुए सफेद मोनियों के हार की शोभा को बढ़ाते हुए उसने,नीचे लिखे अनुसार,वक्तृता प्रारम्भ की। वक्तृता इस लिए कि वह कोई ऐसा वैसा साधारण बोलने वाला न था,किन्तु बहुत बड़ा वक्ता था। वह बोला:-

"अजकुमार,मैं प्रियदर्शन नाम के गन्धर्व का पुत्र हूँ। मेरा नाम प्रियम्बद है। मेरे गर्व को देख कर एक बार मतङ्ग नामक ऋषि मुझ पर बहुत अप्रसन्न हुए। इससे उन्होंने शाप दिया कि जा, तू हाथी हो जा। तेरे सदृश घमण्डी को हाथी ही होना चाहिए । शाप दे चुकने पर मैंने मतङ्ग मुनि को नमस्कार किया, उनकी स्तुति भी की और शापमोचन के लिए उनसे नम्रतापूर्वक विनती भी की। इस पर मुनि का क्रोध शान्त हो गया। होना ही चाहिए था। अग्नि के संयोग से ही पानी को उष्णता प्राप्त होती है। यथार्थ में तो शीत- लत्व ही पानी का स्वाभाविक धर्म है। मुनियों का स्वभाव भी दयालु और शान्त होता है । क्रोध उन्हें कोई बहुत बड़ा कारण उपस्थित हुए बिना नहीं आता । मेरी प्रार्थना पर तपोनिधि मतङ्ग मुनि को दया आई और उन्होंने कहा:-'अच्छा, जा, इक्ष्वाकु के वंश में अज नामक एक राजकुमार होगा । वह जब तेरे मस्तक पर लोहे के मुँह वाला बाण मारेगा तब तेरा हाथी का शरीर छूट जायगा और तुझे फिर अपना स्वाभाविक गन्धर्वरूप मिल जायगा । जिस दिन से मतङ्ग ऋषि ने यह शाप दिया उस दिन से आज तक मैं महाबलवान् इक्ष्वाकुवंशी अज के दर्शनों की प्रतीक्षा में था । आज कहीं आपने मुझे शाप से छुड़ा कर मेरी मनोरथ-सिद्धि की । अतएव आपने मुझ पर जो उपकार किया है उसका यदि मैं कुछ भी बदला न दूं तो आपके प्रभाव से मुझे जो इस गन्धर्व-शरीर की किर प्राप्ति हुई है वह व्यर्थ हो जायगी । प्रत्यु- पकार करने में असमर्थ मनुष्यों के लिए जीने की अपेक्षा मर जाना ही अच्छा है। मित्र, मेरे पास सम्मोहन नाम का एक अस्त्र है। उसका देवता गन्धर्व है। उसी की कृपा से यह अस्त्र मिलता है। इसे शत्र पर चलाने और फिर अपने पास लौटा लेने के मन्त्र जुदे जुदे हैं । वे सब मुझे सिद्ध हैं । यह अस्त्र मैं आपको देता हूँ। लीजिए। इसमें यह बड़ा भारी गुण है कि इसे चलाने से शत्र्यों की प्राण-हानि हुए बिना ही चलाने वाले की जीत होती है। इससे शत्रु मूर्छित हो जाते हैं; .