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भूमिका।


उद्धृत किये जिनमें 'स्कन्द,' 'कुमार,' 'समुद्र' आदि शब्द पाये जाते हैं।
यथा:-

(१) अासमुद्रक्षितीशानां-

(२) प्राकुमारकथोद्घात-

(३) स्कन्दन साक्षादिव देवसेना-

यहाँ 'स्कन्द से उन्होंने स्कन्दगुप्त, 'कुमार' से कुमारगुप्त और 'समुद्र' से समुद्रगुप्त का भी अर्थ निकाला। उन्होंने कहा कि ये श्लिष्ट पद हैं, अतएव द्वार्थिक हैं-इनसे दो दो अर्थ निकलते हैं। एक तो साधारण, दूसरा असाधारण जो गुप्त राजाओं का सूचक है। इस पर सम्भलपुर के एक बङ्गाली विद्वान्, बी० सी० मजूमदार महाशय, ने इन लोगों की बड़ी हँसी उड़ाई। उन्होंने दिखलाया कि यदि इस तरह के दो दो अर्थ वाले श्लोक ढूँढ़े जायँ तो ऐसे और भी कितने ही शब्द और श्लोक मिल सकते हैं। परन्तु उनके दूसरे अर्थ की कोई सङ्गति नहीं हो सकती।

जबसे हार्नले आदि ने यह नई युक्ति निकाली तब से कालिदास के स्थिति-काल-निर्णायक लेखों का तूफ़ान सा आगया है। इसी युक्ति के आधार पर लोग आकाश-पाताल एक कर रहे हैं। कोई कहता है कि कालिदास द्वितीय चन्द्रगुप्त के समय में थे; कोई कहता है कुमारगुप्त के समय में थे; कोई कहता है स्कन्दगुप्त के समय में थे, कोई कहता है यशोधा के समय में थे। इसी पिछले राजा ने हूण-नरेश मिहिरगुल को, ५३२ ईसवी में, मुलतान के पास कोरूर में परास्त करके हूणों को सदा के लिए भारत से निकाल दिया। इसी विजय के उपलक्ष्य में वह शकारि विक्रमादित्य कहलाया। इस विषय में, आगे और कुछ लिखने के पहले, मुख्य मुख्य गुप्तराजाओं की नामावली और उनका शासनकाल लिख देना अच्छा होगा। इससे पाठकों को पूर्वोक्त पण्डितों की युक्तियाँ समझने में सुभीता होगा। अच्छा अब इनके नाम आदि सुनिए:-

(१) चन्द्रगुप्त प्रथम, (विक्रमादित्य) मृत्यु ३२६ ईसवी

(२) समुद्रगुप्त-शासन-काल ३२६ से ३७५ ईसवी तक

(३) चन्द्रगुप्त द्वितीय, (विक्रमादित्य) शासन-काल ३७५ से ४१३ ईसवी तक