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राजी होगा तभी तो भेजेंगे, धक्के देकर थोड़े ही निकाल देंगे।"

"और वह जो अपने आप चला आया?"

"मैंने उसे काफी सिखा पढ़ा दिया है वह वहाँ से टलने वाला नहीं है।"

इस प्रकार पांच महीने और व्यतीत हो गये। पण्डित रामशरण समय समय पर लड़के को यही परामर्श देते रहे कि अभी वहीं रहो और किसी कार्य में लगने का प्रयत्न करो।

कृष्ण शरण उत्तर देता था कि कार्य में लगाने के लिए उसने कई बार अपने श्वसुर से कहा और उन्होंने यही उत्तर दिया कि जल्दी क्या है। कोई काम सोचकर निश्चित किया जायगा।

पण्डित जी प्रत्येक बार हँस कर यही कहते थे—बच्चा कब तक टालेंगे।"

पाँच मास व्यतीत हो जाने पर एक दिन उन्हें शंकर का पत्र मिला। उसमें लिखा था—प्रिय भाई जी, आपको यह जान कर अत्यन्त प्रसन्नता होगी कि चिरंजीवी सौभाग्यवती चम्पादेवी को परसों सन्ध्या के समय शुभ मुहूर्त तथा लग्न में भाई की प्राप्ति हुई है। सूचनार्थ निवेदन है। योग्य सेवा लिखते रहें।

भवदीय

शंकर प्रसाद

चम्पा देवी कृष्णशरण को पत्नी का नाम था। यह पत्र पढ़कर पण्डितजी की आँखों के नीचे अँधेरा छा गया। कुछ देर बाद जब सावधान हुए तो पत्नी के पास पहुंचकर बोले—"किस्तू की माँ, तुम्हारे समधी के लड़का हुआ है।"

किस्नू की माँ घबराकर बोली—"क्या ?"

"तुम्हारी बहू के भाई हुआ है।"

"कब?"

"परसों"