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हुई। लड़की रूपवान तो जरा भी न थी साथ ही उसका स्वास्थ्य भी अच्छा न था। पत्नी ने यह समाचार पति को दिया।

पण्डित जी बोले--"खैर रूपवान नहीं है तो न सही! परन्तु स्वास्थ्य ठीक होना चाहिए।"

"ऐसा कोई बहुत गड़बड़ भी नहीं है परन्तु बहुत तन्दुरुस्त नहीं है।"

"ऐसी काठी ही होगी। बस एक लड़का हो जाय, फर चाहे मर भी जाय तो चिन्ता नहीं।"

"हाँ लड़का तो भगवान चाहे साल दो साल में हो ही जायगा।"

"बस काफी है। हाँ एक काम करना होगा।"

"वह क्या?"

"लड़के को सुसराल में ही रखना होगा।"

"यह क्यों?"

"वहाँ रहेगा तो कोई रोजगार-व्यापार कर लेगा---रुपया वही देंगे?"

"दे देंगे?"

"जब उनके कोई है नहीं तब देंगे नहीं तो जाएंँगे कहाँ?"

"हाँ यह बात भी ठीक है।"

"बड़े भाग्य से यह सम्बन्ध मिला है। मैंने थोड़ी बुद्धिमानी से काम लिया न कहोगी। इतने सम्बन्ध आये, पर मैंने सब अस्वीकार कर दिए। स्वीकार कर लेता तो यह बढ़िया सम्बन्ध कहां मिलता।"

"ठीक बात है। इसीलिए तो कहा है कि धीरज से काम करना अच्छा होता है।"

"लड़की बिदा हो जाय तो एक महीने बाद मैं लड़के को वहीं भेज दूंँगा। अपना वहीं रहेगा और वहीं कोई रोजगार कर लेगा।"

"रोजगार के लिए रुपया भी देना पड़ेगा?"

"हम क्यों देंगे, वही देंगे! हमसे मांगने का उनका साहस पड़ेगा?"

"यदि माँगा तो?"