"रियासत! मकानात और ज़मींदारी।"
"खूब! लड़की के कितने भाई-बहिन हैं।"
"भाई बहिन कोई नहीं, लड़की अकेली है।"
"आपके केवल एक ही लड़की है और कोई लड़की या लड़का नहीं है?"
"जी नहीं।"
यह सुन कर पण्डित जी के मुंँह में पानी भर आया,आँखे चमकने लगीं। अपनी प्रसन्नता को बलात् दाब कर पण्डित जी ने मुँह बनाया और बोले---"इतनी ही बात जरा घाटे की है।"
"यह तो देवी बात है। इसको क्या किया जाय।"
"आपकी बयस तो पचास के लगभग होगी।"
"जी हाँ छियालिस वर्ष की है?"
"लड़की की वयस?"
"चौदह साल की।"
पण्डित जी ने हिसाब लगाया "चौदह साल से अब कोई दूसरा बच्चा नहीं हुआ तब अब क्या होगा। इस लड़की के पहिले कोई संतान हुई थी?"
“जी हाँ! एक लड़का और लड़की हुए थे, परन्तु वे नहीं रहे।"
पण्डित जी ने मुँह बना कर कहा---"बड़े शोक की बात है।"
"परमात्मा की इच्छा है, और क्या कहा जाय।"
"हाँ जी! उसकी इच्छा के विरुद्ध कुछ नहीं होता।"
"यही बात है। हाँ तो लड़के की जन्मकुण्डली दे दें तो बड़ी कृपा हो।"
"जन्मकुण्डली आज तो न दे सकूँगा---आप कल किसी समय पधारने का कष्ट करें तो दे सकूँगा।"
"बहुत अच्छा कल सही। इसो समय?"
"सन्ध्या को पाँच-छः बजे पधारियेगा।"
"बहुत अच्छा।"