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तख्त पर बैठ कर गंगापुत्र से बोले---"यह कथा-वाचक कैसे आदमी हैं?"

"अच्छे हैं दद्दू!"

"चरित्र के भी अच्छे होंगे।"

"अभी तक कोई बात तो सुनने में नहीं आई।"

दद्दू ने सोचा---"संभव है वह तरुणी उनकी पत्नी हो। परन्तु फिर खयाल आया कि यदि पत्नी होती तो उन्हीं के साथ नौका में बैठकर आते। अलग से आने की क्या आवश्यकता थी।"

दद्दू के मन ने कहा---"जरूर दाल में कुछ काला है।"

दद्दू पहले भी अनेक कथावाचकों की कथा सुन चुके थे। उनमें अधिकांश विद्वान तथा चरित्रवान थे। परन्तु इन कथा-वाचक के सम्बन्ध में उनके हृदय में सन्देह उत्पन्न होगया। दद्दू ने सोचा--- "इनका पता लगाना चाहिए कि किस वेश में हैं।"

"अच्छा अब समय तो होगया---कथा आरंभ होने वाली है।"

"हाँ दद्दू! बस चलते ही हैं।"

थोड़ी देर में गङ्गापुत्र दद्दू को लेकर चला।

( ३ )

कथा-स्थान पर पहुँच कर दद्दू ने देखा कि काफी भीड़ जमा है। व्यास गद्दी के निकट स्त्रियों का समूह और उनके पीछे पुरुषों का। दद्दू को देखकर कथा-वाचक महोदय ने उन्हें बुलाकर अपने निकट ही बिठाया। पुरुषों में अनेक दद्दू के परिचित थे। उनसे दद्दू का प्रणाम नमस्कार हुआ

कथा आरम्भ हुई। कथा-वाचक महाशय खींच-तान करके अर्थ समझाने लगे। जनता वाह-वाह करने लगी। दद्दू चुपचाप बैठे सुनते रहे।