हजारों मील पर बोलते-गाते हुए आदमी का कण्ठ-स्वर सुन लेती हो—वह रेडियो, क्या तुमने कभी विचार किया है शीला, वेद के अन्दर से निकाल कर नहीं रख दिया गया। इसके पीछे एक प्राणी की समस्त आयु की तपस्या और त्याग की शक्ति लगी हुई है। उस प्राणी ने सांसारिक सुखों को लात मार कर न जाने कितनी रातें अकेले प्रयोगशाला में बिताई होंगी। जब कि संसार यौवन की मदिरा के नशे में अपनी प्रेयसी को अङ्क में लिये सुखनिद्रा में व्यतीत करता रहा होगा, उस समय यह प्राणी अकेला भोजन तथा निद्रा का तिरस्कार करके और कदाचित अपनी प्रेयसी की भावनाओं की उपेक्षा करके अपने कार्य में तल्लीन रहा होगा। उसी महात्मा के जीवनोत्सर्ग, अपने को मानव-कल्याण के लिए मिटा डालने की भावना के फल का आज संसार रसास्वादन कर रहा है। न जाने कितने आदमी उसका नाम भी नहीं जानते, परन्तु उसके त्याग और तपस्या से लाभान्वित हो रहे हैं।"
शीला बोली—"हमारे ऋषियों ने भी ऐसे ही त्याग और तपस्या करके संसार का कल्याण किया।"
"निस्सन्देह, परन्तु हमने क्या किया? हमने केवल उनके सिद्धान्तों को ले लिया, व्यावहारिकता को छोड़ दिया। बिना व्यावहारिकता के केवल सिद्धान्तों पर मनुष्य की आस्था और श्रद्धा अधिक दिनों तक नहीं टिक सकती।"
शीला जमुहाई लेकर बोली—"तुम क्या कर रहे हो यह बताओ।"
"मैं भी कुछ कर ही रहा हूँ। इस अनन्त प्रकृति सागर के तट पर छिछले जल में खड़ा हुआ इस प्रयत्न में लगा हूँ कि कदाचित् कोई छोटा मोटा मोती हाथ लग जाय।"
"लग चुका !" कहकर शीला उठी और चली गयी।
प्रोफेसर के मुख पर एक मन्द मुस्कान आ कर विलीन हो गई और वह पुनः अपने कार्य में लग गया।