हुए अपनी पत्नी से बोले, "अब इस लड़के का हमारे साथ गुजारा नहीं होगा।"
"क्यों क्या हुआ?
"जरो उसके कमरे में जाकर देख लो।"
पत्नी गयी और नाक दाबें लौटकर बोली--"यह तो बबुआ ने बड़ा गजब किया।"
"तुम्हीं देखो अब क्या किया जाय।"
"अब हम क्या बतावें।"
"बस इसे अलग कर देना चाहिए।"
माँ बैठकर रोने लगी। मिश्रजी बकते-झकते छत पर चले गये।
रात में बबुआ से उनकी बहुत कुछ कहा-सुनी हुई। मिश्रजी ने क्रोध में आकर पहले बबुआ को चार-पांच थप्पड़ मारे फिर अपना सिर पीट लिया।
दूसरे दिन से बबुआ गायब हो गया। एक दिन तो मिश्रजी ने धैर्य्य धारण किया परन्तु दूसरे दिन जब बबुआ का पता न लगा तो वह घबराकर दौड़ लगाने लगे।
इकलौता लड़का। जिसने सुना उसने ही मिश्रजी को धिक्कारा कि सयाने लड़के पर हाथ चला बैठे ! मिश्रजी बड़े जेर ! उल्टे लोग उन्हीं को बेबकूफ बना रहे हैं।
एक कान्यकुब्ज बोले--"अण्डा खाता है तो क्या हुआ। तुम कात्यायनी हो, मांस खाते हो कि नहीं?"
"हाँ सो तो हमारे यहां खाया जाता है, पर हम नहीं खाते।"
"तो बस फिर ! जब खाया जाता है तो आप न खायें तो इससे क्या और जैसा मांस वैसा अण्डा !"
"अण्डा तो अपने यहां नहीं खाया जाता।"
"न खाया जाय ! पर हम तो दोनों में कोई भेद नहीं समझते।" मिश्रजी सिर हिलाकर निरुत्तर से हो गये। अखबार में निकलवाया