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"आप इसकी सेवा-बरदस्त भी तो बहुत करते हैं—अपने बाल-बच्चों की तरह रखते हैं।"

"मैं अपने सामने इसे खिलाता हूँ, नौकर का भरोसा नहीं करता। मेरी चारपाई के पास ही इसका खटोला रहता है उसी पर सोता है।"

"बताओ! इतनी बरदास्त कौन कर सकता है!"

“सेर भर तो गोश्त पाता है, आधा सेर सबेरे और आध सेर साँझ को और दो सेर दूध—सेर भर तड़के, जहाँ भैंसें दुही गई बस पहिले यह छक लेता है और इसी तरह सेर भर सांझ को। और बीच-बीच में टुँगार पाता रहता है कोई लड़का-बच्चा खाने बैठा उसके पास बैठ गया—उनसे कुछ पा गया।"

"हां, हर वक्त छका रहता है।"

"शिकार में जाता है तब इसे देखो। जिस खरगोश या हिरन को देख लेगा बस फिर वह सायत ही निकल जा सके, नहीं तो यह मार ही लेता है।"

"हिरन के बराबर दौड़ लेता है?"

"बड़े मजे से।"

"तभी तो आपने इसका नाम भी 'सिकारी' रक्खा है।"

"यह कुत्ता भी शिकारी जाति का है।"

"जरूर होयगा। देखिये, कुछ चौकन्ना है और हम लोगों को गौर से देख रहा है।"

"यह समझ गया कि हम लोग इसके सम्बन्ध की बात कर रहे हैं। क्यों बे?"

यह कहकर ठाकुर साहब ने उसे थपथपाया। शिकारी ने कान दाब कर दुम हिलाते हुए ठाकुर साहब की ओर देखा और तत्पश्चात पुनः मुँह घुमाकर हाँफने लगा।

ठाकुर बोले—"हमें थोड़ा-बहुत खटका ठाकुर ध्यानसिंह से है और किसी से हमें भय नहीं हैं।"

"बड़ा पाजी ठाकुर है।"