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सहचर

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ठाकुर कामतासिंह एक जमींदार हैं। लगभग पांच सहस्र रुपये वार्षिक के मालगुजार हैं। कुछ गांव सोलहो आने हैं और कुछ में हिस्से हैं।

कामतासिंह उन अधिकांश जमींदारों में से हैं जिनके कारण जमीदारी पेशा बदनाम है। बल्कि यदि देखा जाय तो वह अन्य जमींदारों से दो-चार कदम आगे ही बढ़े हुए हैं।

जैसा कि नियम है ऐसे जमींदारों के शत्रु भी उत्पन्न हो जाते हैं। उनके द्वारा पीड़ित लोगों को अन्य जमींदार अथवा ग्रामीण भड़काया करते हैं। ऐसों में प्रायः ऐसे लोग भी होते हैं जिनका कोई निजी स्वार्थ होता है—अर्थात ऐसे छोटे अथवा दुर्बल जमींदार, जिनका प्रभाव उक्त जमींदार के सामने नगण्य होता है। स्वयं उनकी प्रजा भी उक्त जमींदार के सामने उनका कोई महत्व नहीं समझती। अथवा वे लोग जो स्वयं उक्त जमींदार से पीड़ित होते हैं, और स्वयं अलग रहकर किसी दूसरे के द्वारा अपनी प्रतिशोधाग्नि को शान्त करना चाहते हैं।

संध्या का समय था। कामतासिंह अपने बड़े तथा पक्के भवन के सामने के प्रांगण में बैठे हुए थे। प्रांगण में तीन तख्त बिछे हुए थे, इनमें से एक पर गद्दी तकिया लगा हुआ था इस पर कामतासिंह विराजमान

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