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थोड़ी देर में वह एक पेंसिल लेकर आ गया। यह पेन्सिल निकल की बनी हुई थी। मामूली पेन्सिल से कुछ मोटी थी। अफसर बोला—"देखो यह पेन्सिल है। इसमें यह जो बल्ब लगा है इसे दबाने से इसमें रोशनी हो जायगी। यह रोशनी केवल कागज पर पड़ेगी—इधर उधर नहीं फैलेगी। इससे तुम अन्धेरे में भी लिख सकोगे। इसे अपने पास रक्खो। एक छोटी पाकेट बुक भी चाहिए या तुम्हारे पास है?"

"हो तो दिलवा दीजिए।"

आफिसर ने पाकेट बुक भी दिलवा दी।

तीसरे दिन लुइसी पाकेट-बुक लेकर पहुंची और उसे जर्मन अफसर के सामने पेश किया। जर्मन अफसर उसे पढ़कर बोला—तो यह कहो, यह हम लोगों के विरुद्ध षड्यन्त्र रच रहे हैं। परसों एक वृहत् मीटिंग है। स्थान—क्या लिखा है?"

लुइसी ने बताया।

"यह जगह कहाँ है!"

"यह जगह नगर के एक सुनसान स्थान में है। यहाँ एक पुराना मकान है जो खाली पड़ा रहता है।" इसमें होगी। यह कहकर लुइसी ने मकान का पूरा पता बता दिया। "हूँ! पचास-साठ आदमी होंगे। समय रात को नौ बजे के बाद! हूँ! ठीक है। शाबाश तुमने बहुत बड़ा काम किया। तुम्हें इसका भर पूर इनाम मिलेगा। अच्छा अब तुम जा सकते हो। कोई नई बात हो तो ध्यान रखना।"

XXX

लुइसी के बताये दिन, रात के नौ बजे लगभग पचास जर्मन सैनिकों की एक टुकड़ी अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर उपयुक्त मकान घेरने के लिए चल पड़ी। घूमते घामते दस बजे रात के लगभग ये लोग उक्त मकान के निकट पहुँचे। मकान का द्वार अन्दर से बन्द था। परन्तु मकान के अन्दर प्रकाश होने से यह पता लग रहा था कि अन्दर लोग मौजूद हैं। एक सैनिक ने खिड़की के पास कान लगाकर सुना—कुछ लोगों के बोलने का धीमा-स्वर सुनाई पड़ रहा था।