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"ठीक है, मैं सदैव इसका खयाल रक्खूँगी।"

( २ )

लुइसी नित्य जर्मन कमाण्डर के दफ्तर में जाकर अपनी रिपोर्ट लिखाने लगी। दो तीन दिन तो उसने साधारण बातें बताईं। चौथे दिन उसने रिपोर्ट दी—"कल चार पाँच आदमी मेरे पिता के पास आये थे। एक बन्द कमरे में वह एक घण्टे तक मेरे पिता से बातें करते रहे।"

उससे प्रश्न किया गया—"तुम वे बातें नहीं सुन सके?"

"कैसे सुन सकता था, कमरा अन्दर से बन्द था।"

"सुनने का प्रयत्न करो। यही तो खास बात है।"

"मैं अवश्य सुन लूँगी।"

"शाबाश! तुमको बहुत इनाम मिलेगा।"

सातवें दिन लुइसी ने रिपोर्ट दी—"आज मेरे पिता के पास आठ-दस आदमी आये थे। पिता ने हम लोगों को बता दिया था कि आज कुछ लोग आवेंगे, उनके लिए चाय तैयार रखना। यह समाचार पाकर मैं उस कमर में जिसमें वे लोग बैठने वाले थे पहले से ही छिप गया।"

"ठीक! तुम्हें छिपते किसी ने देखा तो नहीं था।"

"नहीं मैं बाहर जाने का बहाना करके पहले घर से बाहर आगया था फिर अवसर पाकर चुपचाप कमरे में जा छिपा था।"

"शाबाश! क्या बातें हुई थीं?"

"वे सब बातें तो मुझे याद नहीं रहीं, उनका तात्पर्य आप लोगों के विरुद्ध कोई षड्यन्त्र रचने का है। कल फिर मीटिंग है।"

"तो कल भी सुनना और इस बार कागज पेन्सिल साथ रखना। वे लोग जो बातें करें उनके खास-खास स्थल नोट कर लेना।"

"लेकिन जहाँ मैं छिपता हूँ वहाँ बड़ा अन्धेरा रहता है कुछ दिखाई नहीं देता।"

"अच्छा! इसका हम उपाय कर देंगे।"

यह कहकर अफसर ने जर्मन भाषा में एक अर्दली से कुछ कहा।