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"नहीं अब जाऊँगा। आपने इतना किया है तो मैं उन्हें जूते तो पहना लाऊं।"

"अच्छी बात है! हाँ एक बात और है, जब तक विधवा के निर्वाह का कोई अन्य द्वार उत्पन्न न हो तब तक मैं उसे बीस रुपये मासिक देता रहूँगा।"

"आप धन्य हैं पण्डित जी! एक दुखिया के दुःख का नाश करके सच्ची विजय दशमी आपने ही मनाई। संध्या समय मेले में तो जाइयेगा।"

"जी नहीं! मेरी ऐसे मेलों में तनिक भी श्रद्धा नहीं है वरन् देखकर उलटा कष्ट होता है।"