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न पड़ो । वाह भई वाह ! जब बड़ों की यह दशा है तब हम गरीब किस गिनती हैं।"

दो घंटे पश्चात् जब वह महाशय आठ पाने की मिठाई लेकर विधवा के यहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि विधवा बच्चों को नहला रही है, साबुन लगाकर।

वह बोले—'लो यह मिठाई तो मैं ले आया बच्चों के लिए परन्तु-"

विधवा प्रसन्नमुख होकर बोली—"मिठाई तो बहुत आगई !"

"कहाँ से आगई?"

"न जाने कोई दे गया है । और भी बहुत कुछ दे गया है।"

"क्या दे गया है।"

"कोठरी में धरा है देख लो।"

वह व्यक्ति कोठरी में गया तो उसने देखा कि एक थाल मिठाई का भरा रक्खा है । एक थाल में काफी आटा, दाल, चावल, घी इत्यादि कोई दस आदमियों का सामान । एक थाल में स्त्री के लिये दो धुली घोतियां, बच्चों के धुले कपड़े, लड़की के लिए धोती सलूका ! लड़के के लिए धोती, कुर्ता, टोपी ! और पचीस रुपये नकद !

"ये रुपये भी हैं" उस व्यक्ति ने पूछा ।

"हाँ ! कह गया है कि बच्चों के लिए जूते और खिलौनों के लिए !"

"परन्तु दे कौन गया ?'

"मैंने बहुत पूछा पर उसने बताया नहीं, रखके चला गया।" वह व्यक्ति एक दम वहाँ से भागा और सीधा माताप्रसाद के पास पहुँचा । पण्डित जी से वह बोला-"पण्डित जी क्या वह सब सामान आपने भेजा है।"

"राम जी ने भेजा होगा, मुझ में क्या शक्ति है।"

वह व्यक्ति कुछ क्षण हतबुद्धि सा खड़ा रहा। पण्डित जी मुस्करा कर बोले-'बैठो!"