से कोई नतीजा नहीं।"
"तब तक पेड़ तो कट जायगा।' विश्वनाथ ने कहा।
"कट जाने दो ! अदालत से पेड़ के दाम भिलेंगे हर्जाना मिलेगा। अदालत की लडाई लड़ो-फौजदारी करने में मामला उलटा हो जायगा।"
विश्वनाथसिंह चुपचाप वहाँ से चले आये ।
दूसरे दिन लोगों को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि ठाकुर विश्वनाथ ने मूँछे मुंडवा डालीं । लोगों ने कारण पूछा तो ठाकुर बोले-"अब मूँछे रखने का धरम नहीं रहा। हमारे मुंह पर हमारी मूंछे उखाड़वाने की बात कही गई और हम कुछ न कर सके—तब मूंछे रखने से क्या फायदा।"
"बिना सरदार की फौज कभी लड़ी है । हमारी देह में बल होता और हम लाठी चलाने लगते तो साथ वाले भी भिड़ जाते । जब हमी कुछ नहीं कर सके तब साथ वाले क्या करते।"
"जगन्नाथ ने मूँछे मूड़ी थी तब तो उस बेचारे पर बहुत बिगड़े थे।"
"अब उससे भी कह देंगे कि मूछों का जमाना नहीं रहा।" यह कह कर ठाकुर ने मूछों पर हाथ फेरा ।
“अब वहाँ क्या घरा है जो हाथ फेरते हो।"
"आदत पड़ी हुई है वह तो छूटते छूटते ही छूटेगी।"
यह कहते हुए ठाकुर की आँखों में आँसू छलछला आये।