ने आग पर घी का काम किया---"और देखो, यह लौंडा उलटे मुझी को उल्लू बना रहा है।"
ठाकुर साहब ने इस घटना को इतना महत्व दिया कि उस दिन भोजन नहीं किया। जिन लोगों ने सुना और समझाने आये कि--- "आजकल तो सभी मूँछें मुड़ाने लगे हैं, लड़के ने मुँड़ा डालीं तो कौन बड़ा अपराध किया।" उनको भी ठाकुर ने फटकारा। बोले---"बाप-माँ जिन्दा और लड़का मूँछें मुँड़ाये घूमे---ऐसा अन्धेर भी कभी सुना था। अरे मरदानगी और शोभा गई चूल्हे-भाड़ में पर इस बात का तो विचार किया होता कि मेरे माँ-बाप जिन्दा बैठे हैं।"
लोगों ने जगन्नाथ से पूछाकि--"मूंँछें क्यों मूँड़ने लगा? अपने बाप का स्वभाव जान-बूझ कर ऐसा ग़लती का काम किया।"
जगन्नाथ बोला---"कालेज के हमारे साथी चिढ़ाते थे। एक दिन बाजार गये तो हमारे एक साथी ने उस्तरा लिया---छोटे से खूबसूरत वक्स में चमचमाता हुआ देख कर जी ललचा उठा। मैंने भी एक सेट ले लिया। जब खरीद लिया तो उसका व्यवहार भी आवश्यक हो गया।"
एक वृद्ध सज्जन बोले---"यही तो बड़ी बुरी बात हुई है। उस्तरे दुकान दुकान बिकने लगे---इससे और खराबी हो गई।"
"उस्तरे तो पहले भी बिकते थे---आकाश से थोड़े ही बरसते थे।" एक व्यक्ति बोला।
"गधे हो! पहले ऐसे उस्तरे थोड़े ही बिकते थे कि अपने हाथ से बना लो? अब तो विलायतवालों ने ऐसे उस्तरे चला दिये कि एक बच्चा भी अपने आप बना ले। यही सारी खराबी की जड़ हो गई।"
ठाकुर विश्वनाथ ने ऐसा हो हल्ला मचाया कि जगन्नाथसिंह तोबा बोल गया और उसने निश्चय कर लिया कि पिता के जीवन काल में मूँछें कभी नहीं मूँड़ेगा।
( ३ )
ठाकुर विश्वनाथसिंह और उनके गाँव के अन्य ज़मींदारों में चलती