बर्मा से आसाम आने वाली सड़क पर शरणार्थियों के झुण्ड चले आरहे थे। इनमें जवान, बूढ़े, बच्चे तथा स्त्रियाँ---सभी प्रकार के मनुष्य थे। इसी समय एक मोटरकार जो तेजा के साथ चली आ रही थी सहसा धीमी होकर रुक गई। इस कार को एक साहबी ठाट-बाट के हिंदुस्तानी सज्जन चला रहे थे। इनके बराबर एक १३; १४ वर्ष का बालक था, यह भी सूट-बूट तथा सोला हैट पहने था। पीछे की सीट पर एक प्रौढ़ तथा एक युवती बैठी थी। कार खड़ी होते ही ड्राइव करने वाले प्रौढ़ सज्जन का चेहरा पीला पड़ गया। उन्होंने घबरा कर कहा "पैट्रोल खत्म हो गया---अब क्या किया जाय।"
कार खड़ी होते ही उसे पैदल चलने वाले कुछ लोगों ने घेर लिया। एक बुड्ढा बोला---"मैं बहुत थक गया हूँ हजूर---बिठा लीजिए।" एक स्त्री बोली, "सरकार! मुझे बिठा लीजिए---मेरे पैरों में छाले पड़ गये हैं।" इसी प्रकार कई प्राणी अपने-अपने लिए प्रार्थना करने लगे। कार चलाने वाले सज्जन विषाद-पूर्ण स्वर में बोले-"अरे भई तेल खतम हो गया। अब हमको भी तुम्हारे साथ पैदल चलना पड़ेगा।"
"अच्छा!" कहकर वे लोग जो अपने-अपने लिए प्रार्थनाएँ कर रहे थे निराश होगये और पुनः चल दिए।
एक व्यक्ति बोल उठा---"मोटर की जान निकल गई।"
"कहाँ आकर धोखा दिया ससुरी ने।" एक दूसरे ने कहा।