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विचारा है?

अमरनाथ—लड़की की भलाई। लड़की लक्ष्मी-रूपा है। जैसी सुन्दर वैसी सरल। ऐसी लड़की यदि दीपक लेकर ढूँढ़ी जावे, तो भी कदाचित ही मिले।

दूसरा—हाँ, यह अवश्य एक बात है।

अमरनाथ—परन्तु लड़की की माता लड़का देखकर विवाह करने को कहती है।

तीसरा—यह तो व्यवहार की बात है।

घनश्याम—और, मैं भी लड़की देखकर विवाह करूँगा।

दूसरा—यह भी ठीक ही है।

अमरनाथ—तो इसके लिए क्या विचार है?

तीसरा—विचार क्या! लड़की देखेंगे।

अमरनाथ—तो कब?

घनश्याम—कल।

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दूसरे दिन शाम को घनश्याम और अमरनाथ गाड़ी पर सवार होकर लड़की देखने चले। गाड़ी चक्कर खाती हुई यहियागंज की एक गली के सामने जा खड़ी हुई! गाड़ी से उतर कर दोनों मित्र गली में घुसे। लगभग सौ कदम चलकर अमरनाथ एक छोटे से मकान के सामने खड़े हो गये और मकान का द्वार खटखटाया।

घनश्याम बोले—मकान देखने से तो बड़े गरीब जान पड़ते हैं।

अमरनाथ—हाँ, बात तो ऐसी ही है, परन्तु यदि लड़की तुम्हारे पसन्द आ जाय, तो यह सब सहन किया जा सकता है।

इतने में द्वार खुला और दोनों भीतर गये। सन्ध्या हो जाने के कारण मकान में अंधेरा हो गया था; अतएव ये लोग द्वार खोलने वाले को स्पष्ट न देख सके।

एक दालान में पहुँचने पर ये दोनों चारपाइयों पर बिठा दिए गए और बिठाने वाली ने, जो स्त्री थी, कहा—मैं जरा दिया जला लूँ।

अमरनाथ—हाँ, जला लो।