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वक्तव्य दे रहे हैं, किसी दिन लार्ड वेवल को समझा रहे हैं, किसी दिन ब्रिटिश सरकार का मार्ग प्रदर्शन कर रहे हैं, किसी दिन हिन्दूसभा पर, किसी दिन कम्यूनिस्टों पर---इस प्रकार प्रायः नित्य ही सम्पत्तिलाल जी का कोई न कोई वक्तव्य प्रकाशित होता रहता था। जनता ने भी जाना कि भूतपूर्व रायबहादुर साहब नये मुसलमान की भांति प्याज! प्याज!! चिल्ला रहे हैं।

( ३ )

इधर ज्यों ज्यों चुनाव के नामिनेशन की तारीख निकट आती जाती थी, सम्पत्तिलाल का उत्साह बढ़ता जाता था। खाऊवीर काँग्रेसमैनों की दौड़ लग रही थी। कोई इलाहाबाद की यात्रा करता था, कोई लखनऊ, कोई बम्बई इत्यादि तक पहुँचा। इस प्रकार सम्पत्तिलाल जी के लिए बड़ी दौड़-धूप हो रही थी।

एक दिन सम्पत्तिलाल जी को सूचना दी गई कि "आपके नाम की प्रान्तीय काँग्रेस-कमेटी ने सिफारिश कर दी है।"

सम्पत्तिलाल जो अपने अकांग्रेसी अन्तरङ्ग मित्रों में बैठकर कहते---"जान पड़ता है एसेम्बली में जाना ही पड़ेगा।"

"अच्छा है! हम लोगों को बल मिल जायगा।"

"मेरी तो विशेष इच्छा नहीं थी, परन्तु प्रान्तीय काँग्रेस-कमेटी बहुत जोर डाल रही है। उसने तो एक प्रकार से मुझे भेजना निश्चित भी कर लिया है।"

"देखा आपने, खिताब छोड़ने से यह बात हुई।"

"खिताब तो मैं स्वयं ही छोड़ना चाहता था अब आज कल राष्ट्रीय दृष्टि से इन खिताबों का कोई मूल्य नहीं रहा।"

"इसमें क्या सन्देह है। परन्तु एम० एल० ए० होकर हमारा खयाल रखिएगा।"

"और तो हमारी कोई इच्छा नहीं, हमारे लड़के को कोई बढ़िया नौकरी दिलवा दीजिएगा।"

"हमें तो कोई सरकारी ठेका-वेका दिलवा देना!"