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वाह री होली


होली आ गई! होली आते ही ऊधम मचने लगा। पता नहीं इस त्योहार में यह क्या बात है कि लोगों की प्रवृत्ति ऊधम तथा शरारत की ओर बहक जाती है। बड़े-बुजुर्ग, गम्भीरता में बौधिसत्व के दर्जें तक पहुँचे हुए लोग भी इस त्योहार पर हँसी मजाक का अनशन तोड़ देते हैं। अपनी अपनी प्रकृति तथा रुचि के अनुसार लोग यह त्योहार मनाने की तैयारी करते हैं। आइये देखें कौन किस धुन में हैं। एक सेठ साहब जिन्होंने कपड़े में खूब चाँदी काटी है अपनी गद्दी पर विराजमान हैं। आस-पास मुनीम तथा अन्य कर्मचारी बैठे हैं। इसी समय एक अन्य दूकान के ब्राह्मण देवता किसी कार्यवश आते हैं। कार्य समाप्त करके जब वह चलने लगते हैं तो सेठ जी से पूछते हैं:---"अबकी होली के लिए क्या क्या इन्तजाम हैं लाला?"

लाला बोले---"जो तुम्हारा हुकुम हो।"

"हमारा हुकुम! तुम तो जानते ही हो लाला, हम तो खाली एक चीज के प्रेमी हैं।"

"भांग के! क्यों न?"

"हाँ? माजूम तो बनवानोगे ही लाला।"

"हां सभी करना पड़ेगा। बिना किये प्राण नहीं बचेंगे।"

"तो हमारा भी खयाल रखना।"

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