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कम्यूनिस्ट सभा
( १ )
होली के अवसर पर जबकि चारों ओर अबीर-गुलाल की धूम मची थी, कुछ कम्यूनिस्ट लोग एक कमरे में जमा थे। यद्यपि इनके वस्त्र भी होली के रंग में रंँगे हुए थे, पर इनके मुखमण्डल पर होली की मुद्रा का चिन्ह भी नहीं था। ऐसा प्रतीत होता था कि किसी बड़ी गम्भीर समस्या पर विचार हो रहा है।
सहसा एक महाशय बोले---
"जब तक कम्यूनिज्म स्थापित नहीं" होता तब तक ये बातें बन्द नहीं हो सकतीं।'
"बन्द हों चाहे न हों, परन्तु हम लोगों को तो विरोध करना ही चाहिए।" दूसरे ने कहा।
"हम लोगों को होली में भाग न लेना चाहिए।" तीसरा बोला।
"हाँ? साथ ही एक सभा करके होली का विरोध करना चाहिए।"
"सभा तो खैर होनी ही चाहिए परन्तु और कुछ भी होना चाहिए।"
"और क्या होना चाहिए?"
कोई ऐसा कार्य जो प्रभावोत्पादक हो।"
सब लोग सोचने लगे परन्तु साम्यवादी मस्तिष्क होने के कारण
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