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यह सुनकर सदस्य का बृद्ध पिता बिगड़ उठा। बोला--"अबे ओ गधे, मर्दों का भी कहीं छोटा कपड़ा होता है! छोटा कपड़ा औरतों का होता है। चला बड़ा रंगरेज को दुम बनकर। बात कहने का भी सलीका नहीं है।"

रंगरेज बोला----"साहब, आप तो खामखाह बिगड़ते हैं। मर्दों का छोटा कपड़ा है लंगोटी। कोई लंँगोटी दे दीजिए तो रंग दूं।"

"अबे जायगा यहाँ से या कुछ लेगा। लंगोटी रंँगेगा। रंगी लंगोटी कौन देखेगा। तेरी...!"

यह सुनकर रंगरेज वहाँ से भी भागा और सीधा मन्त्री के पास पहुँचा मन्त्री जी ने पूछा---"क्या सबके यहाँ हो आये!

"अरे साहब, आपने भी अच्छा काम बताया। पहली जगह औरत बिगड़ उठी। मैं वहाँ से भाग न पाऊँ तो चैला लेकर जुट पड़े। दूसरी जगह एक बुड्ढा बिगड़ उठा। उसने भी मारने की धमकी दी और गाली दी सो घाते में। मुझसे यह काम न होगा। किसी दूसरे को बुला लीजिए।"

यह कहकर रंगरेज चल दिया। मन्त्री जी अपना सा मुंह लेकर खड़े रहे गये।

सन्ध्या समय जब प्रमेले के स्थान पर सब लोग जमा हुए तो एक सदस्य बिगड़ कर बोले---"वह आपका रंगरेज नहीं चला। हम तो प्रतीक्षा ही करते रहे।"

मन्त्री जी बोले---"रंगरेज चला था और दो जगह गया भी था, परन्तु वहाँ वह पिटते पिटते बचा। इस कारण फिर वह कहीं नहीं गया।"

"किसके यहाँ पिटते-पिटते बचा?"

मन्त्री जी ने दोनों सदस्यों के नाम बताए। नाम सुनते ही अन्य सदस्यगण उन दोनों सदस्यों से बोले---"क्यों जी, आपको क्या