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"इसलिए भी और इसलिए भी कि मेला का अर्थ होता है जिसमें सब लोगों का मेला हो---लोग मिलें।"

"लोग एकत्र तो होंगे ही। इसलिए मेला कहने में क्या हर्ज है?"

"तो थोड़ा अन्तर कर दीजिए। अर्थात् प्रमेला कर दीजिए।" सर्वसम्मति से यह नाम निश्चित हो गया।

मन्त्री जी बोले---'सज्जनों, कल यहाँ प्रमेला होगा। आप सब लोगों की उपस्थिति आवश्यक है।

इसके पश्चात् होली की सभा समाप्त हुई।

( २ )

दूसरे दिन सबेरे आठ बजे के लगभग प्रगतिशील संघ के एक सदस्य के यहाँ किसी ने आबाज दी।

सदस्य महोदय ने पूछा---"कौन है?"

'मैं हूँ रंगरेज।'

सदस्य महोदय ऊपर से पाकर बोले----"क्या रंग डालने आये हो?"

"जी नहीं, प्रगतिशील संघ की आज्ञा के अनुसार मैं आपके कुछ कपड़े रंँगने आया हूँ। जो कपड़े रंगवाने हों, जल्दी से निकाल दीजिए।"

यह सुनते ही सदस्य महोदय अपनी पत्नी से बोले---"तुम्हें कपड़े रंँगवाने हैं?"

"रँगवाई क्या लेगा?' पत्नी ने पूछा।

"मुफ्त। प्रगतिशील संघ की ओर से आया है।"

यह सुनते ही पत्नी ने आधा दर्शन इकलाइयाँ निकालकर दीं और कहा---'इन्हें रँगवा दो। एक हरी, एक नीली, एक गुलाबी, एक फालसई और एक बसन्ती।"

सदस्य महोदय ने इकलाइयांँ लाकर रंँगरेज के सामने धर दीं और रंग बता दिए। रंँगरेज बोला---"देखिए मुझे सबके यहां जाना