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विरोधी हैं। इस कारण उसे ही जलाना चाहिए। कल सबेरे से रंगरेज चलेगा।"

"रंगरेज चलेगा?" एक ने प्रश्न किया।

"हाँ, रंग चलाना पुराना ढंग है। इस कारण प्रगतिशीलता की दृष्टि से रंगरेज चलाया जायगा।"

"रंगरेज कैसे चलाया जायगा।"

"वह आप सबको कल मालूम हो जायगा।"

"अच्छा, मेला भी तो कीजियेगा।"

"अरे हाँ, मेले के सम्बन्ध में तो कुछ सोचा ही नहीं गया।"

"सोच लीजिए।"

"पुरानी चाल के मेले में सब लोग परस्पर मिलते हैं। प्रकाशिता में क्या होना चाहिए---अर्थात् सब लोग मिलकर आपस में लात- जूता करें।"

"यह बात गलत है। लड़ाई-भिड़ाई से अपन कोसों दूर रहते हैं।"

"साल भर का त्योहार है, एक दिन लड़ लेना बुरा नहीं।"

"तो जवानी लड़ाई रखिए। हम तैयार हैं। हाथ-पैरों की लड़ाई के लिए हम तैयार नहीं हो सकते।"

"अच्छा, जवानी जमा खर्च सही। इस प्रकार त्योहार भी मन जायगा और किसी को चोट-चपेट भी नहीं आयेगी।"

यह राह सबको पसन्द आ गई।

यह निश्चित हो जाने के पश्चात दकियानूस का पुतला जलाया गया। सब लोग बड़े प्रसन्न थे कि दकियानूस जल रहा है। सब चिल्ला उठे---"दकियानूसी मुर्दाबाद। प्रगतिशीलता जिन्दाबाद!"

पुतला जल जाने के पश्चात् मन्त्री जी ने पुनः व्याख्यान दिया--- "सज्जनों आपने देखा, यह प्रगतिशील होली जलाई गई। कल संध्या--समय इसी स्थान पर प्रगतिशील मेला होगा।"

"मेला नाम न रखिये, कुछ और सोचिए।" एक ने कहा।

"क्यों, क्या इसलिए कि मेला पुराना नाम है ।