पूछा---"कहाँ चले?"
उन्होंने हाथ के इशारे से कहा--"अभी आता हूँ।"
पाँच मिनट पश्चात् वह लौटकर आये और लम्बे-लम्बे लेटकर बोले---'थोड़ा पानी मंँगाना।"
"क्यों, क्या हुआ।"
"बड़े जोर की कै हो गई।"
"क्यों?"
"यार क्या बताऊँ। कवि सम्मेलन का नाम सुनते ही एकदम से मतली उठी। इसीलिए तो बाहर भागा था।"
"तब तो यार तुम पूरे प्रगतिशील हो ऐसी प्रगतिकिसी ने नहीं की कि कवि सम्मेलन का नाम सुनकर....!"
"फिर तुमने उसी कमबख्त का नाम लिया। मैं यहाँ से चला जाऊंगा। उसका नाम सुनते ही पेट मुँह को आने लगता है।"
"अच्छा जाने दो। हाँ तो हम लोग क्या सोच रहे थे?"
"यही कि रंग के स्थान में क्या चलाया जाय।"
"रंग के स्थान में रंगरेज चलाया जाय।”
"रंँगरेज कैसे चलाया जायगा?"
"रंँगरेज तो स्वयं चलता है। उसे चलाने की क्या आवश्यकता है।"
"हाँ यार, क्या उल्लूपन है, जो चीज स्वयं चलती है, उसे चलाने की क्या आवश्यकता है।"
"अच्छा तो अब सब कार्यक्रम निश्चित हो गया। आज नोटिस निकाल देना चाहिए कि परसों प्रगतिशील होली मनायी जायगी।"
रात में प्रगतिशील संघ के सदस्य एक स्थान पर जमा हुए। वहां एक मनुष्याकार पुतला पहिले से ही मौजूद था। इस पुतले की छाती पर लिखा हुअा था 'दकियानूस।' जब सब लोग एकत्र होगये तो संघ के मन्त्री बोले---"सज्जनों, आज हम लोग प्रगतिशील होली मनाने के लिए यहाँ एकत्र हुए हैं। इस समय का कार्यक्रम केवल इतना है कि हम होली के बदले दकियानूस को जलावें। दकियानूस प्रगतिशीलता का