न होने पाये, अब मैं चलता हूँ। यह लो सूरदास, यह तुम्हारी इतनी दूर आने की मजबूरी है।”
यह कहकर उन्होंने एक रुपया सूरदास के हाथ में रखा, और चल दिये। नायकराम ने कहा—"सूरदास, आज राजा साहब भी तुम्हारी खोपड़ी को मान गये।