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रंगभूमि


होता कि घीसू है, तो लाठी उसे दे देता। इतने दिन हो गये, लेकिन कोई कह दे कि मैंने किसी लड़के को झूठमूठ मारा है। तुम्हारा ही दिया खाता हूँ, तुम्हारे ही लड़के को मारूँगा?"

जमुनी—"नहीं, अब तुम्हें घमंड हुआ है। भीख माँगते हो, फिर भी लाज नहीं आती, सबकी बराबरी करने को मरते हो। आज मैं लहू का घूँट पीकर रह गई; नहीं तो जिन हाथों से तुमने उसे ढकेला है, उसमें लूका लगा देती।"

बजरंगी जमुनी को मना कर रहा था, और लोग भी समझा रहे थे, लेकिन वह किसी की न सुनती थी। सूरदास अपराधियों की भाँति सिर झुकाये यह वाग्बाण सह रहा था। मुँह से एक शब्द भी न निकलता था।

भैरो ताड़ी उतारने जा रहा था, रुक गया, और सूरदास पर दो-चार छींटे उड़ा दिये-"जमाना ही ऐसा है, सब रोजगारों से अच्छा भीख माँगना। अभी चार दिन पहले घर में पूँजी भाँग न थी, अब चार पैसे के आदमी हो गये हैं। पैसे होते हैं, तभी घमंड होता है। नहीं क्या घमंड करेंगे हम भोर तुम, जिनकी एक रुपया कमाई है, तो दो खर्च है!"

जगधर औरों से तो भीगी बिल्ली बना रहता था, सूरदास को धिक्कारने के लिए वह भी निकल पड़ा। सूरदास पछता रहा था कि मैंने लाठी क्यों न छोड़ दी, कौन कहे कि दूसरी लकड़ी न मिलती। जगधर और भैरो के कटु वाक्य सुन-सुनकर वह और भी दुखी हो रहा था। अपनी दोनता पर रोना आता था। सहसा मिठुआ भी आ पहुँचा। वह भी शरारत का पुतला था, घीसू से भी दो अंगुल बढ़ा हुआ। जगधर को देखते ही यह सरस पद गा-गाकर चिढ़ाने लगा

लालू का लाल मुँह, जगधर का काला,
जगधर तो हो गया लालू का साला।

भैरो को भी उसने एक स्वरचित पद सुनाया-

भैरो, भैरो, ताड़ी बेच,
या बीबी की साड़ी बेच,

चिड़नेवाले चिढ़ते क्यों हैं, इसकी मीमांसा तो मनोविज्ञान के पंडित ही कर सकते। हमने साधारणतया लोगों को प्रेम और भक्ति के भाव ही से चिढ़ते देखा है। कोई राम या कृष्ण के नामों से इसलिए चिढ़ता है कि लोग उसे चिढ़ाने ही के बहाने से ईश्वर के नाम लें। कोई इसलिए चिढ़ता है कि बाल-वृन्द उसे घेरे रहें। कोई बैंगन या मछली से इसलिए चिढ़ता है कि लोग इन अखाद्य वस्तुओं के प्रति घृणा करें। सारांश यह कि चिढ़ना एक दार्शनिक क्रिया है। इसका उद्देश्य केवल सत्-शिक्षा है। लेकिन भैरो और जगधर में यह भक्तिममी उदारता कहाँ। वे बाल-विनोद का रस लेना क्या जानें। दोनों झल्ला उठे। जगधर मिठुआ को गालियाँ देने लगा, लेकिन भैरो को गालियाँ देने से संतोष न हुआ। उसने लपककर उसे पकड़ लिया। दो-तीन तमाचे जोर-जोर से मारे