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रंगभूमि


लिए धुएँ का भुरता काफी था। और, इस दरिद्रता पर भी उन्हें कुछ चिंता नहीं थी, बैठे बाटियाँ सेंकते और गाते थे। बैलों के गले में बँधी हुई घंटियाँ मजीरों का काम दे रही थीं। गनेस गाड़ीवान ने सूरदास से पूछा——"क्यों भगत, ब्याह करोगे?"

सूरदास ने गरदन हिलाकर कहा——"कहीं है डौल?"

गनेस——"हाँ, है क्यों नहीं। एक गाँव में एक सुरिया है, तुम्हारी ही जाति-बिरादरी की है, कहो तो बातचीत पक्की करूँ। तुम्हारी बरात में दो दिन मजे से बाटियाँ लगें।"

सूरदास——"कोई ऐसी जगह बताते, जहाँ धन मिले, और इस भिखमंगी से पीछा छूटे। अभी अपने ही पेट की चिंता है, तब एक अंधी की और चिंता हो जायगी। ऐसी बेड़ी पैर में नहीं डालता। बेड़ी ही है, तो सोने की तो हो।"

गनेस——"लाख रुपये की मेहरिया न पा जाओगे, रात को तुम्हारे पैर दबायेगी, सिर में तेल डालेगी, तो एक बार फिर जवान हो जाओगे। ये हड्डियाँ न दिखाई देंगी।"

सूरदास——"तो रोटियों का सहारा भी जाता रहेगा। ये हड्डियाँ देखकर ही तो लोगों को दया आती है। मोटे आदमियों को भीख कौन देता है? उलटे और ताने मिलते हैं।"

गनेस——"अजी नहीं, वह तुम्हारी सेवा भी करेगी, और तुम्हें भोजन भी देगी। बेचन साह के यहाँ तेलहन झाड़ेगी, तो चार आने रोज पायेगी।"

सूरदास——"तब तो और भी दुर्गति होगी। घरवाली की कमाई खाकर किसी को मुँह दिखाने लायक भी न रहूँगा।"

सहसा एक फिटन आती हुई सुनाई दी। सूरदास लाठी टेककर उठ खड़ा हुआ। यही उसकी कमाई का समय था। इसी समय शहर के रईस और महाजन हवा खाने आते थे। फिटन ज्यों ही सामने आई, सूरदास उसके पीछे "दाता, भगवान् तुम्हारा कल्यान करें" कहता हुआ दौड़ा।

फिटन में सामने की गद्दी पर मि॰ जॉन सेवक और उनकी पत्नी मिसेज़ जॉन सेवक बैठी हुई थीं। दूसरी गद्दी पर उनका जवान लड़का प्रभु सेवक और छोटी बहन सोफिया सेवक थी। जॉन सेवक दुहरे बदन के गोरे-चट्टे आदमी थे। बुढ़ापे में भी चेहरा लाल था। सिर और दाढ़ी के बाल खिचड़ी हो गये थे। पहनावा अँगरेज़ी था, जो उन पर खूब खिलता था। मुख की आकृति से गरूर और आत्मविश्वास झलकता था। मिसेज़ सेवक को काल-गति ने अधिक सताया था। चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ गई थीं, और उससे हृदय की संकीर्णता टपकती थी, जिसे सुनहरी ऐनक भी न छिपा सकती थी। प्रभु सेवक की मसें भींग रही थीं, छरीरा डील, इकहरा बदन, निस्तेज मुख, आँखों पर ऐनक, चेहरे पर गंभीरता और विचार का गाढ़ा रंग नज़र आता था। आँखों से करुणा की ज्योति-सी निकली पड़ती थी। वह प्रकृति-सौंदर्य का आनन्द उठाता हुआ जान पड़ता था। मिस सोफिया बड़ी-बड़ी रसीली आँखोंवाली, लज्जाशीला युवती थी। देह अति कोमल, मानों पंचभूतों की जगह पुष्पों से उसकी सृष्टि हुई हो। रूप अति सौम्य, मानों लज्जा और