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रंगभूमि
राजा साहब ने सूरदास की मूर्ति तोड़ डाली और खुद उसी के नीचे दब गये। जब तक जिये, सूरदास के साथ वैर-भाव रखा, मरने के बाद भी द्वेष करना न छोड़ा। ऐसे ईर्ष्यालु मनुष्य भी होते हैं! ईश्वर ने उसका फल भी तत्काल ही दे दिया। जब तक जिये, सूरदास से नीचा देखा; मरे भी, तो उसी के नीचे दबकर। जाति का द्रोही, दुश्मन, दंभी, दगाबाज और इनसे भी कठोर शब्दों में उनकी चर्चा हुई।
कारीगरों ने फिर मसालों से मूर्ति के पैर जोड़े और उसे खड़ा किया। लेकिन उस आघात के चिह्न अभी तक पैरों पर बने हुए हैं और मुख भी विकृत हो गया है।