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रंगभूमि


इस तरह घर से निकाल दिये गये, गोया किसी गैर के बच्चे हैं, मेरी बीवी को रो-रोकर दिन काटने पड़े, कोई आँसू पोछनेवाला भी नहीं हुआ, और मैंने इसी लौंडे के लिए गबन किया था? इसी के लिए अमानत की रकम उड़ाई थी! क्या मैं मर गया था? अगर वे लोग मेरे बाल-बच्चों को अच्छी तरह इज्जत-आबरू के साथ रखते, तो क्या मैं ऐसा गया गुजरा था कि उनके एहसान का बोझ उतारने की कोशिश न करता! न दूध- घी खिलाते, न तंजेब-अद्धी पहनाते, रूखी रोटियाँ ही देते, गजी-गाढ़ा ही पहनाते; पर घर में तो रखते! वे रुपयों के पान खा जाते होंगे, और यहाँ मेरी बीवी को सिलाई करके अपना गुजर-बसर करना पड़ा! उन सबों से तो जॉन सेवक ही अच्छे, जिन्होंने रहने का मकान तो न गिरवाया, मदद करने के लिए आये तो।"

कुल्सूम ने ये विपत्ति के दिन सिलाई करके काटे थे। देहात की स्त्रियाँ उसके यहाँ अपने लिए कुरतियाँ, बच्चों के लिए टोप और कुरते सिलातीं। कोई पैसे दे जाती, कोई नाज। उसे भोजन-वस्त्र का कष्ट न था। ताहिरअली अपनी समृद्धि के दिनों में भी इससे ज्यादा सुख न दे सके थे। अंतर केवल यह था कि तब सिर पर अपना पति था, अब सिर पर कोई न था। इस आश्रय-हीनता ने विपत्ति को और भी असह्य बना दिया था। अंधकार में निर्जनता और भी भयप्रद हो जाती है।

ताहिरअली सिर झुकाये शोक-मग्न बैठे थे कि कुल्सूम ने द्वार पर आकर कहा-"शाम हो गई, और अभी तक कुछ नहीं खाया। चलो, खाना ठंडा हुआ जाता है।"

ताहिरअली ने सामने के खंडहरों की ओर ताकते हुए कहा-"माहिर थाने ही में रहते हैं, या कहीं और मकान लिया है?"

कुल्सूम-"मुझे क्या खबर, यहाँ तब से झूठों भी तो नहीं आये। जब ये मकान खाली करवाये जा रहे थे, तब एक दिन सिपाहियों को लेकर आये थे। नसीमा और साबिर चचा-चचा करके दौड़े, पर दोनों को दुत्कार दिया।"

ताहिर-"हाँ, क्यों न दुत्कारते, उनके कौन होते थे!"

कुल्सूम-"चलो, दो लुकमे खा लो।"

ताहिर - "माहिर मियाँ से मिले बगैर मुझे दाना-पानी हराम है।"

कुल्सूम-"मिल लेना, कहीं भागे जाते हैं?"

ताहिर-“जब तक जी-भर उनसे बातें न कर लूँगा, दिल को तस्कीन न होगी।"

कुल्सूम-"खुदा उन्हें खुश रखे, हमारी भी तो किसी तरह कट ही गई, ख़ुदा ने किसी-न-किसी हीले से रोजी पहुँचा तो दी। तुम सलामत रहोगे, तो हमारी फिर आराम से गुजरेगी, और पहले से ज्यादा अच्छी तरह। दो को खिलाकर खायेंगे। उन लोगों ने जो कुछ किया, उसका सवाब और अजाब उनको खुदा से मिलेगा।"

ताहिर-"खुदा ही इंसाफ करता, तो हमारी यह हालत क्यों होती? उसने इंसाफ करना छोड़ दिया।"