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रंगभूमि


तो मालूम होता है कि सूरदास ने कोई अन्याय नहीं किया। कोई बदमास हमारी ही बहू-बेटी को बुरी निगाह से देखे, तो बुरा लगेगा कि नहीं? उसके खून के प्यासे हो जायँगे, घात पायेंगे, तो सिर उतार लेंगे। अगर सूरे ने हमारे साथ वही बरताव किया, तो क्या बुराई की! घीसू का चलन बिगड़ गया था। सजा न पा जाता, तो न जाने क्या अंधेर करता।"

ठाकुरदीन-"अब तक या तो उसी की जान पर बन गई होती, या दूसरों की।"

जगधर-"चौधरी, घर-गाँव में इतनी सच्चाई नहीं बरती जाती। अगर सच्चाई से किसी का नुकसान होता हो, तो उस पर परदा डाल दिया जाता है। सूरे में और सब बातें अच्छी थीं, बस इतनी ही बात बुरी थी।"

ठाकुरदीन-“देखो जगधर, सूरदास यहाँ नहीं है, किसी के पीठ-पीछे निंदा नहीं करनी चाहिए। निंदा करनेवाले की तो बात ही क्या, सुननेवालों को भी पाप लगता है। न जाने पूरब-जनम में कौन-सा पाप किया था, सारी जमा-जथा चोर मूस ले गये, यह पाप अब न करूँगा।"

बजरंगी-"हाँ जगधर, यह बात अच्छी नहीं। मेरे ऊपर भी तो वही पड़ी है, जो तुम्हारे ऊपर पड़ी; लेकिन सूरदास की बदगोई नहीं सुन सकता।"

ठाकुरदीन-"इनकी बहू-बेटी को कोई घूरता, तो ऐसी बातें न करते।"

जगधर-"बहू-बेटी की बात और है, हरजाइयों की बात और।”

ठाकुरदीन-"बस, अब चुप ही रहना जगधर! तुम्ही एक बार सुभागी की सफाई करते फिरते थे, आज हरजाई कहते हो। लाज भी नहीं आती?"

नायकराम-"यह आदत बहुत खराब है।"

बजरंगी-"चाँद पर थूकने से थूक अपने हो मुँह पर पड़ता है।"

जगधर-"अरे, तो मैं सूरे की निंदा थोड़े ही कर रहा हूँ। दिल दुखता है, तो बात मुँह से निकल ही आती है। तुम्हीं सोचो, बिद्याधर अब किस काम का रहा? पढ़ाना-लिखाना सब मिट्टी में मिला कि नहीं? अब न सरकार में नौकरी मिलेगी, न कोई दूसरा रखेगा। उसकी तो जिंदगानी खराब हो गई। बस, यही दुख है, नहीं तो सूरदास का-सा आदमी कोई क्या होगा।"

नायकराम-"हाँ, इतना मैं भी मानता हूँ कि उसकी जिंदगानी खराब हो गई। जिस सच्चाई से किसी का अनभल होता हो, उसका मुँह से न निकलना ही अच्छा। लेकिन सूरदास को सब कुछ माफ है।"

ठाकुरदीन-"सूरदास ने इलम तो नहीं छीन लिया?"

जगधर-'यह इलम किस काम का, जब नौकरी-चाकरी न कर सके। धरम की बात होती, तो यों भी काम देती। यह बिद्या हमारे किस काम आवेगी?"

नायकराम-"अच्छा, यह बताओ कि सूरदास मर गये, तो गंगा नहाने चलोगे कि नहीं"