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रंगभूमि


हालतों में सबसे बड़ा विचार यह होना चाहिए कि रोगी निर्बल न होने पाये, उसकी शक्ति क्षीण न हो।"

अस्पताल के रोगियों और कर्मचारियों को ज्यों ही मालूम हुआ कि विनयसिंह की माताजी आई हैं, तो सब उनके दर्शनों को जमा हो गये, कितनों ही ने उनको पद-रज माथे पर चढ़ाई। यह सम्मान देखकर जाह्नवी का हृदय गर्व से प्रफुल्लित हो गया। विहसित मुख से सबों को आशीर्वाद देकर यहाँ से चलने लगी, तो सोफिया ने कहा-"माताजी, आपकी आज्ञा हो, तो मैं यहीं रह जाऊँ। सूरदास की दशा चिंताजनक जान पड़ती है। इसकी बातों में वह तत्त्वज्ञान है, जो मृत्यु की सूचना देता है। मैंने इसे होश में कभी आत्मज्ञान की ऐसी बातें करते नहीं सुना।"

रानी ने सोफी को गले लगाकर सहर्ष आज्ञा दे दी। वास्तव में सोफिया सेवा भवन जाना न चाहती थी। वहाँ की एक-एक वस्तु, वहाँ के फूल-पत्ते, यहाँ तक कि वहाँ की वायु भी विनय की याद दिलायेगी। जिस भवन में विनय के साथ रही, उसी में विनय के बिना रहने का खयाल ही उसे तड़पाये देता था।

रानी चली गई, तो सोफिया एक मोढ़ा डालकर सूरदास की चारपाई के पास बैठ गई। सूरदास की आँखें बंद थीं, पर मुख पर मनोहर शांति छाई हुई थी। सोफिया को आज विदित हुआ कि चित्त की शांति ही वास्तविक सौंदर्य है।

सोफी को वहाँ बैठे-बैठे सारा दिन गुजर गया। वह निर्जल, निराहार, मन मारे बैठी हुई सुखद स्मृतियों के स्वप्न देख रही थी, और जब आँखें भर आती थीं, तो आड़ में जाकर रूमाल से आँसू पोछ आती थी। उसे अब सबसे तीव्र वेदना यही थी कि मैंने विनय की कोई इच्छा पूरी न की, उनकी अभिलाषाओं को तृप्त न किया, उन्हें वंचित रखा। उनके प्रेमानुराग की स्मृति उसके हृदय को ऐसी मसोसती थी कि वह विकल होकर तड़पने लगती थी।

संध्या हो गई थी। सोफिया लैंप के साममे बैठी हुई सूरदास को प्रभु मसीह का जीवन-वृत्तांत सुना रही थी। सूरदास ऐसा तन्मय हो रहा था, मानों उसे कोई कष्ट नहीं है। सहसा राजा महेंद्रकुमार आकर खड़े हो गये, और सोफी की ओर हाथ बढ़ा दिया। सोफिया ज्यों-की-त्यों बैठी रहो। राजा साहब से हाथ मिलाने की चेष्टा न की।

सूरदास ने पूछा-"कौन है मिस साहब?"

सोफिया ने कहा- "राजा महेंद्रकुमार हैं।"

सूरदास ने आदर-भाव से उठना चाहा, पर सोफिया ने लिटा दिया और बोली-"हिलो मत, नहीं तो घाव स्तुल जायगा। आराम से पड़े रहो।"

सूरदास-"राजा साहब आये हैं। उनका इतना आदर भी न करूँ? मेरे ऐसे भाग्य तो हुए। कुछ बैठने को है?"

सोफिया-"हाँ, कुर्सी पर बैठ गये।"

राजा साहब ने पूछा--"सूरदास, कैसा जी है?"