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रंगभूमि


लेकिन हुक्म हो चुका था। बाढ़ चली, बंदूकों के मुँह से धुआँ निकला, घाँय-धाँय की रोमांचकारी ध्वनि निकली और कई आदमी चक्कर खाकर गिर पड़े। समूह की ओर से पत्थरों की बौछार होने लगी। दो-चार टहनियाँ गिर पड़ी थीं, किंतु वृक्ष अभी तक खड़ा था।

फिर बंदूक चलाने की आज्ञा हुई। राजा साहब ने अबकी बहुत गिड़गिड़ाकर कहा-"Mr. Brown,these,shots'are piercing my heart" किंतु आज्ञा मिल चुकी थी, दूसरी बाढ़ चली, फिर कई आदमी गिर पड़े। डालियाँ गिरी, लेकिन वृक्ष स्थिर खड़ा रहा।

तीसरी बार फायर करने की आज्ञा दी गई। राजा साहब ने सजल-नयन होकर व्यथित कंठ से कहा-Mr. Brown, now I am done for!” बाढ़ चली, कई आदमी गिरे और उनके साथ इंद्रदत्त भी गिरे। गोली वक्षःस्थल को चीरती हुई पार हो गई थी। वृक्ष का तना गिर गया!

समूह में भगदर पड़ गई। लोग गिरते-पड़ते, एक दूसरे को कुचलते, भाग खड़े हुए। कोई किसी पेड़ की आड़ में छिपा, कोई किसी घर में घुस गया, कोई सड़क के किनारे की खाइयों में जा बैठा; पर अधिकांश लोग वहाँ से हटकर सड़क पर आ खड़े हुए।

नायकराम ने विनयसिंह से कहा- "भैया, क्या खड़े हो, इंद्रदत्त को गोली लग गई।"

विनय अभी तक उदासीन भाव से खड़े थे। यह खबर पाते ही गोली-सी लग गई। बेतहाशा दौड़े, और संगीनों के सामने, गली के द्वार पर, आकर खड़े हो गये। उन्हें देखते ही भागनेवाले सँभल गये; जो छिपे बैठे थे, निकल पड़े। जब ऐसे-ऐसे लोग मरने को तैयार हैं, जिनके लिए संसार में सुख-ही-सुख है, तो फिर हम किस गिनती में हैं! यह विचार लोगों के मन में उठा। गिरती हुई दीवार फिर खड़ी हो गई। सुपरिंटेंडेंट ने दाँत पीसकर चौथी बार फायर करने का हुक्म दिया। लेकिन यह क्या? कोई सिपाही बंदूक नहीं चलाता, हवलदार ने बंदूक जमीन पर पटक दी, सिपाहियों ने भी उसके साथ ही अपनी-अपनी बंदूकें रख दीं। हवलदार बोला- “हुजूर को अख्तियार है, जो चाहें करें; लेकिन अब हम लोग गोली नहीं चला सकते। हम भी मनुष्य हैं, हत्यारे नहीं।"

ब्रॉउन-“कोर्टमार्शल होगा।"

हवलदार-"हो जाय।"

ब्रॉउन-"नमकहराम लोग!"

हवलदार-"अपने भाइयों का गला काटने के लिए नहीं, उनकी रक्षा करने के लिये नौकरी की थी!"

यह कहकर सब-के-सब पीछे की ओर फिर गए, और सूरदास के झोंपड़े की तरफ चले। उनके साथ ही कई हजार आदमी जय-जयकार करते हुए चले। विनय उनके