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रंगभूमि


कई आदमियों ने इन लोगों को घेर लिया। ऐसे अवसरों पर लोगों की उत्सुकता बढ़ी हुई होती है। क्या हुआ? क्या कहा? क्या जवाब दिया। सभी इन प्रश्नों के जिज्ञासु होते हैं। सूरदास ने सजल नेत्रों से ताकते हुए आवेश कंपित कंठ से कहा- "भैया, तुम भी कहते हो कि रुपया ले लो! मुझे तो इस पुतलीघर ने पीस डाला। बाप-दादों की निशानी दस बीघे जमीन थी, वह पहले ही निकल गई, अब यह झोपड़ी भी छीनी जा रही है। संसार इसी माया-मोह का नाम है। जब इससे मुक्त हो जाऊँगा, तो झोपड़ी में रहने न आऊँगा। लेकिन जब तक जीता हूँ, अपना घर मुझसे न छोड़ा जायगा। अपना घर है, नहीं देते। हाँ, जबरदस्ती जो चाहे, ले ले।"

इन्द्रदत्त-"जबरदस्ती कोई नहीं कर रहा है! कानून के अनुसार ही ये मकान खाली कराये जा रहे हैं। सरकार को अधिकार है कि वह किसी सरकारी काम के लिए जो मकान या जमीन चाहे ले ले।"

सूरदास-"होगा कानून, मैं तो एक धरम का कानून जानता हूँ, इस तरह जबर-जस्ती करने के लिए जो कानून चाहे, बना लो। यहाँ कोई सरकार का हाथ पकड़ने-वाला तो है नहीं। उसके सलाहकार भी तो सेठ-महाजन ही हैं।"

इंद्रदत्त ने राजा साहब के पास जाकर कहा-"आज अंधे का मुआमला आज स्थगित कर दें, तो अच्छा हो। गँवार आदमी, बात नहीं समझता, बस अपनी ही गाये जाता है।"

राजा ने सूरदास को कुपित नेत्रों से देखकर कहा-"गँवार नहीं है, छटा हुआ बदमाश है। हमें और तुम्हें, दोनों ही को कानून पढ़ा सकता है। है भिखारी, मगर टर्रा। मैं इसका झोंपड़ा गिरवाये देता हूँ।"

इस वाक्य के अंतिम शब्द सूरदास के कानों में पड़ गये। बोला-"झोंपड़ा क्यों गिरवाइएगा? इससे तो यही अच्छा कि मुझो को गोली मरवा दीजिए।"

यह कहकर सूरदास लाठी टेकता हुआ वहाँ से चला गया। राजा साहब को उसकी धृष्टता पर क्रोध आ गया। ऐश्वर्य अपने को बड़ी मुश्किल से भूलता है, विशेषतः जब दूसरों के सामने उसका अपमान किया जाय। माहिरअली को बुलाकर कहा-"इसकी झोपड़ी अभी गिरा दो।"

दारोगा माहिरअली चले, निःशस्त्र पुलिस और सशस्त्र पुलिस और मजदूरों का एक दल उनके साथ चला, मानों किसी किले पर धावा करने जा रहे हैं। उनके पीछे-पीछे जनता का एक समूह भी चला। राजा ने इन आदमियों के तेवर देखे, तो होश उड़ गये। उपद्रव की आशंका हुई। झोपड़े को गिराना इतना सरल न प्रतीत हुआ, जितना उन्होंने समझा था। पछताये कि मैंने व्यर्थं माहिरअली को यह हुक्म दिया। जब मुहल्ला मैदान हो जावा, तो झोपड़ा आप-ही-आप उजड़ जाता, सूरदास कोई भूत तो है नहीं कि अकेला उसमें पड़ा रहता। मैंने चिवटी को तलवार से मारने की चेष्टा की! माहिरअली क्रोधी आदमी है, और इन आदमियों के रुख भी बदले हुए हैं।