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रंगभूमि

मिसेज सेवक-"नहीं, तूने यह बात पूछ ली, बहुत अच्छा किया। मैं भी मुगालते में नहीं रखना चाहती। मेरे घर में प्रभु मसीह के द्रोहियों के लिए जगह नहीं है।"

प्रभु सेवक-"आप नाहक उससे उलझती हैं। समझ लीजिए, कोई पगली बक रही है।"

मिसेज सेवक-"क्या करूँ, मैंने तुम्हारी तरह दर्शन नहीं पढ़ा। यथार्थ को स्वप्न नहीं समझ सकती। यह गुण तो तत्त्वज्ञानियों ही में हो सकता है। यह मत समझो कि मुझे अपनी संतान से प्रेम नहीं है। खुदा जानता है, मैंने तुम्हारी खातिर क्या-क्या कष्ट नहीं झेले। उस समय तुम्हारे पापा एक दफ्तर में क्लर्क थे। घर का सारा काम-काज मुझी को करना पड़ता था। बाजार जाती, खाना पकाती, झाडू लगाती; तुम दोनों ही बचपन में कमजोर थे, नित्य एक-न-एक रोग लगा ही रहता था। घर के कामों से जरा फुरसत मिलती, तो डॉक्टर के पास जाती। बहुधा तुम्हें गोद में लिये-ही-लिये रातें कट जाती। इतने आत्मसमर्पण से पाली हुई संतान को जब ईश्वर से विमुख होते देखती हूँ, तो मैं दुःख और क्रोध से बावली हो जाती हूँ। तुम्हें मैं सच्चा, ईमान का पक्का, मसीह का भक्त बनाना चाहती थी। इसके विरुद्ध जब तुम्हें ईसू से मुँह मोड़ते देखती हूँ; उनके उपदेश, उनके जीवन और उनके अलौकिक कृत्यों पर शंका करते पाती हूँ, तो मेरे हृदय के टुकड़े हो जाते हैं, और यही इच्छा होती है कि इसकी सूरत न देखूँ। मुझे अपना मसीह सारे संसार से, यहाँ तक कि अपनी जान से भी प्यारा है।"

सोफिया—"आपको ईसू इतना प्यारा है, तो मुझे भी अपनी आत्मा, अपना ईमान उससे कम प्यारा नहीं है। मैं उस पर किसी प्रकार का अत्याचार नहीं सह सकती।"

मिसेज सेवक-"खुदा तुझे इस अभक्ति की सजा देगा। मेरी उससे यही प्रार्थना। है कि वह फिर मुझे तेरी सूरत न दिखाये।"

यह कहकर मिसेज़ सेवक कमरे के बाहर निकल आई। रानी और इंदु उधर से आ रही थीं। द्वार पर उनसे भेंट हो गई। रानीजी मिसेज सेवक के गले लिपट गई, और कृतज्ञता-पूर्ण शब्दों का दरिया बहा दिया। मिसेज सेवक को इस साधु प्रेम में वनावट की बू आई। लेकिन रानी को मानव-चरित्र का ज्ञान न था। इंदु से बोलीं—"देख, मिस सोफिया से कह दे, अभी जाने की तैयारी न करे। मिसेज सेवक, आप मेरी खातिर से सोफिया को अभी दो-चार दिन यहाँ और रहने दें, मैं आपसे सविनय अनुरोध करती हूँ। अभी मेरा मन उसकी बातों से तृप्त नहीं हुआ, और न उसकी कुछ सेवा हो कर सकी। मैं आपसे वादा करती हूँ, मैं स्वयं उसे आपके पास पहुँचा दूँगी। जब तक वह यहाँ रहेगी, आपसे दिन में एक बार भेंट तो होती ही रहेगी। धन्य हैं आप, जो ऐसी सुशीला लड़की पाई! दया और विवेक की मूर्ति है। आत्मत्याग तो इसमें कूट-कूटकर भरा हुआ है।"

मिसेज सेवक—"मैं इसे अपने साथ चलने के लिए मजबूर नहीं करती। आप जितने दिन चाहें, शौक से रखें।"