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रंगभूमि


तुम्हारी स्नेह-दृष्टि काफी है, और जाने क्या-क्या। और, मेरा यह हाल है कि घंटे-भर भी उसे न देखू, तो चित्त विकल हो जाता है।"

इतने में मोटर की आवाज आई और एक क्षण में इंदु आ पहुँची।

इंद्रदत्त-"आइए इंदुरानी, आइए। आप ही का इंतजार था।"

इंदु-"झूठे हो, मेरी इस वक्त जरा भी चर्चा न थी, रुपये की चिंता में पड़े हुए हो।"

इंद्रदत्त-"तो मालूम होता है,आप कुछ लाई हैं। लाइए, वास्तव में हम लोग बहुत चिंतित हो रहे थे।"

इंदु-'मुझसे माँगते हो? मेरा हाल जानकर भी! एक बार चंदा देकर हमेशा के लिए सीख गई। (विनय से) सोफिया कहाँ हैं? अम्माजी तो अब राजी हैं न?"

विनय-"किसी के दिल की बात कोई क्या जाने।"

इंदु-"मैं तो समझती हूँ, अम्माँजी राजी भी हो जायँ, तो भी तुम सोफी को न पाओगे। तुम्हें इन बातों से दुःख तो अवश्य होगा, लेकिन किसी आघात के लिए पहले से तैयार रहना इससे कहीं अच्छा है कि वह आकस्मिक रीति से सिर पर आ पड़े।"

विनय ने आँसू पीते हुए कहा-"मुझे भी कुछ ऐसा ही अनुमान होता है।"

इंदु-"सोफिया कल मुझसे मिलने गई थी। उसकी बातों ने उसे भी रुलाया और मुझे भी। बड़े धर्म-संकट में पड़ी हुई है। न तुम्हें निराश करना चाहती है, न माताजी को अप्रसन्न करना चाहती है। न जाने क्यों उसे अब भी संदेह है कि माताजी उसे अपनी वधू नहीं बनाना चाहतीं। मैं समझती हूँ कि यह केवल उसका भ्रम है, वह स्वयं अपने मन के रहस्य को नहीं समझती। वह स्त्री नहीं है, केवल एक कल्पना है, भावों और आकांक्षाओं से भरी हुई। तुम उसका रसास्वादन कर सकते हो, पर उसे अनुभव नहीं कर सकते, उसे प्रत्यक्ष नहीं देख सकते। कवि अपने अंतरतम भावों को व्यक्त नहीं कर सकता। वाणी में इतना सामर्थ्य ही नहीं। सोफिया वही कवि को अंतर-तम भावना है।"

इंद्रदत्त-"और आपकी ये सब बातें भी कोरी कवि-कल्पना हैं। सोफिया न कवि-कल्पना है और न कोई गुप्त रहस्य; न देवी है, न देवता। न अप्सरा है, न परी। जैसी अन्य स्त्रियाँ होती हैं, वैसी ही एक स्त्री वह भी है, वही उसके भाव हैं, वही उसके विचार हैं। आप लोगों ने कभी विवाह की तैयारी की, कोई भी ऐसी बात को, जिससे मालूम हो कि आप लोग विवाह के लिए उत्सुक हैं? तो जब आप लोग स्वयं उदासीन हो रहे हैं, तो उसे क्या गरज पड़ी हुई है कि इसकी चर्चा करती फिरे। मैं तो अक्खड़ आदमी हूँ। उसे लाख विनय से प्रेम हो, पर अपने मुँह से तो विवाह की बात न कहेगी, आप लोग वही चाहते हैं, जो किसी तरह नहीं हो सकता। इसलिए अपनी लाज की रक्षा करने को उसने यही युक्ति निकाल रखो है। आर लोग तैयारियाँ कीजिए, फिर उसकी ओर से आपत्ति हो, तो अलबत्ता उससे शिकायत हो सकती है। जब देखती है,