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रंगभूमि

जॉन सेवक—"मेरी तो सलाह है कि आप रियासत को कोर्ट ऑफ्वार्ड स के सिपुर्द कर दीजिए। गवर्नमेंट आपके प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लेगी और आपके प्रति उसका सारा संदेह शांत हो जायगा। तब कुँवर विनयसिंह की राजनीतिक उदंडता का रियासत पर जरा मी असर न पड़ेगा; और यद्यपि इस समय आपकी यह व्यवस्था बुरी मालूम होगी, लेकिन कुछ दिनों बाद जब उनके विचारों में प्रौढ़ता आ जायगी, तो वह आपके कृतज्ञ होंगे और आपको अपना सच्चा हितैषो समझेंगे। हाँ, इतना निवेदन है कि इस काम में हाथ डालने के पहले आप अपने को. खूब दृढ़ कर लें। उस वक्त अगर आपकी ओर से जरा भी पसोपेश हुआ, तो आपका सारा प्रयत्न विफल हो जायगा, आप गवर्नमेंट के सन्देह को शान्त करने की जगह और भी उकसा देंगे।"

कुँवर—"मैं जायदाद की रक्षा के लिए सब कुछ करने को तैयार हूँ। मेरो इच्छा केवल इतनी है कि विनय को आर्थिक कष्ट न होने पाये। बस, अपने लिए मैं कुछ नहीं चाहता।"

जॉन सेवक—'आप प्रत्यक्ष रूप से तो कुँवर विनयसिंह के लिए कोई व्यवस्था नहीं कर सकते। हाँ, यह हो सकता है कि आप अपनी वृत्ति में से जितना उचित समझें, उन्हें दे दिया करें।"

कुँवर—“अच्छा, मान लीजिए, विनय इसी मार्ग पर और भी अग्रसर होते गये, तो?"

जॉन सेवक—"तो उन्हें रियासत पर कोई अधिकार न होगा।"

कुँवर—"लेकिन उनकी सन्तान को तो यह अधिकार रहेगा?"

जॉन सेवक—"अवश्य।

कुँवर—“गवर्नमेंट स्पष्ट रूप से यह शर्त मंजूर कर लेगी?"

जॉन सेवक—"न मंजूर करने का कोई कारण नहीं मालूम पड़ता।"

कुंवर—"ऐसा तो न होगा कि विनय के कामों का फल उनकी सन्तान को भोगना पड़े? सरकार रियासत को हमेशा के लिए जब्त कर ले? ऐसा दो-एक जगह हुआ है।बरार ही को देखिए।”

जॉन सेवक—"कोई खास बात पैदा हो जाय, तो नहीं कह सकते; लेकिन सरकार की यह नीति कभी नहीं रही। बरार की बात जाने दीजिए। वह इतना बड़ा सूका है कि किसी रियासत में उसका मिल जाना राजनीतिक कठिनाइयों का कारण हो सकता है।"

कुँवर—"तो मैं कल डॉक्टर गंगुली को शिमले से तार भेजकर बुलाये लेता हूँ?"

जॉन सेवक—"आप चाहें, तो बुला लें। मैं तो समझता हूँ, यहीं से मसविदा बना-कर उनके पास भेज दिया जाय। या मैं स्वयं चला जाऊँ और सारी बातें आपके इच्छानुसार तय कर आऊँ।"

कुँवर साहब ने धन्यवाद दिया और घर चले आये। रात-भर वह इसी हैस-बैस में पड़े रहे कि विनय और जाह्नवी से इस निश्चय का समाचार कहूँ या न कहूँ। उनका