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रंगभूमि


इन्हें डाली दे, उन्हें नजराना पेश कर; इनकी सिफारिश करवा, उनकी चिट्ठी ला। बारे मिस्टर जॉन सेवक की सिफारिश काम कर गई। ये सब मोरचे तो पार हो गये। अंतिम मोरचा डॉक्टरी परीक्षा थी। यहाँ सिफारिश और खुशामद की गुजर न थी। ३२) सिविल सर्जन के लिए, १६) असिस्टेंट सर्जन के लिए और ८) क्लर्क तथा चपरासियों के लिए, कुल ५६) का जोड़ था। ये रुपये कहाँ से आयें चारों ओर से निराश होकर ताहिरअली कुल्सूम के पास आये और बोले-"तुम्हारे पास कोई जेवर हो, तो दे दो, मैं बहुत जल्द छुड़ा दूंगा।" उसने तिनककर संदूक उनके सामने पटक दिया और कहा-“यहाँ गहनों की हबस नहीं, सब आस पूरी हो चुकी। रोटी-दाल मिलती जाय, यही गनीमत है। तुम्हारे गहने तुम्हारे सामने हैं, जो चाहो, करो।" ताहिरअली कुछ देर तक तो शर्म से सिर न उठा सके। फिर संदूक की ओर देखा। ऐसी एक भी वस्तु न थी, जिससे इसकी चौथाई रकम भी मिल सकती। हाँ, सब चीजों को कूड़ा कर देने पर काम चल सकता था। सकुचाते हुए सब चीजें निकालकर रूमाल में बाँधी और बाहर आकर इस सोच में बैठे ही थे कि इन्हें क्यों कर ले जाऊँ कि इतने में मामा आई। ताहिरअली को सूझी, क्यों न इसकी मारफत रुपये मँगवाऊँ। मामाएँ इन कामों में निपुण होती हैं। धीरे से बुलाकर उससे यह समस्या कही। बुढ़िया ने कहा-"मियाँ, यह कौन-सी बड़ी बात है, चीज तो रखनी है, कौन किसी से खैरात माँगते हैं। मैं रुपये ला दूँगो, आप निसाखातिर रहें।' गहनों की पोटली लेकर चली, तो जैनब ने देखा। बुलाकर बोलीं-"तू कहाँ लिये-लिये फिरेगी, मैं माहिरअली से रुपये मँगवाये देती हूँ, उनका एक दोस्त साहूकारी का काम करता है।" मामा ने पोटली उसे दे दी। दो घंटे बाद अपने पास से ५६) निकालकर दे दिये। इस भाँति यह कठिन समस्या हल हुई। माहिरअली मुरादाबाद सिधारे और तब से वहीं पढ़ रहे थे। वेतन का आधा भाग वहाँ निकल जाने के बाद शेष आधे में घर का खर्च बड़ी मुश्किल से पूरा पड़ता। कभी-कभी उपवास करना पड़ जाता। उधर माहिरअली आधे ही पर संतोष न करते। कभी लिखते, कपड़ों के लिए रुपये भेजिए; कभी टेनिस खेलने के लिए सूट की फरमाइश करते। ताहिरअली को कमीशन के रुपयों में से भी कुछ-न-कुछ वहाँ भेज देना पड़ता था।

एक दिन रात-भर उपवास करने के बाद प्रातःकाल जैनब ने आकर कहा—"आज रुपयों की कुछ फिक्र की, या आज भी रोजा रहेगा?"

ताहिरअली ने चिढ़कर कहा—"मैं अब कहाँ से लाऊँ? तुम्हारे सामने कमीशन के रुपये मुरादाबाद नहीं भेज दिये थे? बार-बार लिखता हूँ कि किफायत से खर्च करो, मैं बहुत तंग हूँ; लेकिन वह हजरत फरमाते हैं, यहाँ एक-एक लड़का घर से सैकड़ों मँगवाता है और बेदरेग खर्च करता है, इससे ज्यादा किफायत मेरे किये नहीं हो सकती। जब उधर का यह हाल है, इधर का यह हाल, तो रुपये कहाँ से लाऊँ? दोस्तों में भी तो कोई ऐसा नहीं बचा, जिससे कुछ माँग सकूँ।"