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रंगभूमि


खातिर से इतना कर सकता हूँ कि जिन परिवारों का कोई रक्षक न रह गया हो, अथवा जो जुरमाने के कारण दरिद्र हो गये हों, उन्हें गुप्त रीति से कुछ सहायता दे दी जाय। हरि-हरि! तुम अभी क्लार्क के पास तो नहीं गये थे?"

विनय—"गया था, वहीं से तो आ रहा हूँ।"

महाराजा—(घबराकर) "उनसे यह तो नहीं कह दिया कि मेम साहब बड़े आराम से हैं और आने पर राजी नहीं हैं?"

विनय—"यह भी कह दिया, छिपाने की कोई बात न थी। किसी भाँति उन्हें धैर्य तो हो।"

महाराजा—(जाँघ पर हाथ पटककर) "सर्वनाश कर दिया! हरि-हरि! चौपटनाश कर दिया। शिव-शिव! आग तो लगा दी, अव मेरे पास क्यों माये हो? शिव शिव! क्लार्क कहेगा, कैदी कैद में आराम से है, तो इसमें कुछ-न-कुछ रहस्य है। अवश्य कहेगा! ऐसा कहना स्वाभाविक भी है। मेरे अदिन आ गये, शिव-शिव! मैं इस आक्षेप का क्या उत्तर दूँगा! भगवन् , तुमने घोर संकट में डाल दिया। यही कहते हैं बचपन की बुद्धि! वहाँ न जाने कौन-सा शुभ समाचार कहने दौड़े थे। पहले प्रजा को भड़काया, रियासत में आग लगाई, अब यह दूसरा आघात किया। मूर्ख! तुझे क्लार्क से कहना चाहिए था, वहाँ मेम को नाना प्रकार के कष्ट दिये जा रहे हैं, अनेक यातनाएँ मिल रही हैं। ओह! शिव-शिव!"

सहसा प्राइवेट सेक्रटरी ने फोन में कहा—“मिस्टर क्लार्क आ रहे हैं।"

महाराजा ने खड़े होकर कहा—"आ गया यमदूत, आ गया। कोई है? कोट-पत-लून लाओ। तुम जाओ विनय, चले जाओ, रियासत से चले जाओ। फिर मुझे मुँह मत दिखाना, जल्दी पगड़ी लाओ, यहाँ से उगालदान हटा दो।"

विनय को आज राजा से घृणा हो गई। सोचा, इतना नैतिक पतन, इतनी कायरता! यो राज्य करने से डूब मरना अच्छा है! वह बाहर निकले, तो नायकराम ने पूछा-"कैसी छनी?"

विनय—"इनको तो मारे भय के आर ही जान निकली जाती है। ऐसा डरते हैं, मानों मिस्टर क्लार्क कोई शेर हैं और इन्हें आते-ही-आते खा जायँगे। मुझसे तो इस दशा में एक दिन भी न रहा जाता।"

नायकराम—"भैया, मेरी तो अब सलाह है कि घर लौट चलो, इस जंजाल में कब तक जान खपाओगे?"

विनय ने सजल नयन होकर कहा—"पण्डाजी, कौन मुँह लेकर घर जाऊँ? मैं अब घर जाने योग्य नहीं रहा। माताजी मेरा मुँह न देखेंगी। चला था जाति की सेवा करने, जाता हूँ सैकड़ों परिवारों का सर्वनाश करके। मेरे लिए तो अब डूब मरने के सिवा और कुछ नहीं रहा। न घर का रहा, न घाट का। मैं समझ गया नाय कराम, मुझसे कुछ न होगा, मेरे हाथों किसी का उपकार न होगा, मैं विष बोने ही के लिए पैदा किया गया