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रंगभूमि


की चेष्टा न करें, तो आप स्वयं चोर की सहायता कर रहे हैं। उदासीनता बहुधा अपराध से भी भयंकर होती है।"

विनय—"कम-से-कम इतना तो कीजिए कि जो लोग मेरी शहादत पर पकड़े गये हैं, उन्हें बरी कर दीजिए।"

सरदार—"असंभव है।"

विनय—"मैं शासन-नीति के नाते नहीं, दया और सौजन्य के नाते आपसे यह विनीत आग्रह करता हूँ।"

सरदार—"कह दिया भाईजान कि यह असंभव है। आप इसका परिणाम नहीं सोच रहे हैं।"

विनय—"लेकिन मेरी प्रार्थना को स्वीकार न करने का परिणाम भी अच्छा न होगा । आप समस्या को और जटिल बना रहे हैं।"

सरदार—मैं खुले हुए विद्रोह से नहीं डरता। डरता हूँ केवल सेवकों से, प्रजा के हितैषियों से और उनसे यहाँ की प्रजा का जी भर गया है। बहुत दिन बीत जायँगे, इसके पहले कि प्रजा देश-सेवकों पर फिर विश्वास करे।"

विनय—"अगर इसी नीयत से आपने मेरे हाथों प्रजा का अनिष्ट कराया, तो आपने मेरे साथ घोर विश्वासघात किया, लेकिन मैं आपको सतर्क किये देता हूँ कि यदि आपने मेरा अनुरोध न माना, तो आप रियासत में ऐसा विप्लव मचा देंगे, जो रियासत की जड़ हिला देगा। मैं यहाँ से मिस्टर क्लार्क के पास जाता हूँ। उनसे भी यही अनुरोध करूँगा, और यदि वह भी न सुनेंगे, तो हिज हाइनेस की सेवा में यही प्रस्ताव उपस्थित करूँगा। अगर उन्होंने भी न सुना, तो फिर इस रियासत का मुझसे बड़ा और कोई शत्रु न होगा।"

यहकर विनयसिंह उठ खड़े हुए और नायकराम को साथ लिये मिस्टर क्लार्क के बँगले पर जा पहुँचे। वह आज ही अपने शिकारी मित्रों को बिदा करके लौटे थे और इस समय विश्राम कर रहे थे। विनय ने अरदली से पूछा, तो मालूम हुआ कि साहब कुछ काम कर रहे हैं। विनय बाग में टहलने लगे। जब आध घंटे तक साहब ने न बुलाया, तो उठे और सीधे क्लार्क के कमरे में घुस गये, वह इन्हें देखते ही उट बैठे और बोले-

“आइए—आइए, आप ही की याद कर रहा था। कहिए, क्या समाचार है? सोफिया का पता तो आप लगा ही आये होंगे?"

विनय—"जी हाँ, लगा आया।"

यह कहकर विनय ने क्लार्क से भी वही कथा कहो, जो सरदार साहब से कही थी, और वही अनुरोध किया।

क्लार्क—"मिस सोफी आपके साथ क्यों नहीं आई?"

विनय—"यह तो मैं नहीं कह सकता, लेकिन वहाँ उन्हें कोई कष्ट नहीं है।"

क्लार्क—"तो फिर आपने नई खोज क्या की? मैंने तो समझा था, शायद आपके