करे। विद्रोहियों ने मिसेज क्लार्क को यह कहने के लिए मजबूर किया होगा। वे मिसेज क्लार्क को उस वक्त तक न छोड़ेंगे, जब तक हम सारे कैदियों को मुक्त न कर दें। यह विजेताओं की नीति है और मैं इसे नहीं मान सकता। मिसेज क्लार्क को कड़ी-से-कड़ी यातनाएँ दी जा रही हैं और उन्होंने उन यातनाओं से बचने के लिए आपसे यह सिफारिश की है, और कोई बात नहीं है।"
विनय—"मैं इस विचार से सहमत नहीं हो सकता। मिसेज क्लार्क बहुत प्रसन्न दिखाई देती थीं। पीड़ित हृदय कभी इतना निश्शंक नहीं हो सकता।”
सरदार—"यह आपकी आँखों का दोष है। अगर मिसेज़ क्लार्क स्वयं आकर मुझसे कहें कि मैं बड़े आराम से हूँ, तो भी मुझे विश्वास न आयेगा। आप नहीं जानते, ये लोग किन सिद्धियों से स्वाधीनता पर जान देनेवाले प्राणियों पर भी आतंक जमा लेते हैं, यहाँ तक कि उनके पंजे से निकल आने पर भी कैदी उन्हीं की-सी कहता है और उन्हीं की-सी करता है। मैं एक जमाने में पुलिस का कर्मचारी था। आपसे सच कहता हूँ, मैंने कितने ही राजनीतिक अभियोगों में बड़े-बड़े व्रतधारियों से ऐसे अपराध स्वीकार करा दिये, जिनकी उन्होंने कल्पना तक न की थी। वीरपालसिंह इस विषय में हमसे कहीं चतुर है।”
विनय—"सरदार साहब, अगर थोड़ी देर के लिए मुझे यह विश्वास भी हो जाय कि मिसेज क्लार्क ने दबाव में आकर मुझसे ये बातें कही हैं, तो भी अब ठंडे हृदय से विचार करने पर मुझे ज्ञात हो रहा है कि हमें इतनी निर्दयता से दमन न करना चाहिए था। अब उन अभियुक्तों पर कुछ रिआयत होनी चाहिए।"
सरदार—"रिआयत राजनीति में पराजय का सूचक है। अगर मैं यह भी मान लूँ कि मिसेज क्लार्क वहाँ आराम से हैं और स्वतंत्र हैं, तथा हमने जसवंतनगरवालों पर घोर अत्याचार किया, फिर भी मैं रिआयत करने को तैयार नहीं हूँ। रिआयत करना अपनी दुर्बलता और भ्रांति की घोषणा करना है। आप जानते हैं, रिआयत का परिणाम क्या होगा? विद्रोहियों के हौसले बढ़ जायँगे, उनके दिल से रियासत का भय जाता रहेगा और जब भय न रहा, तो राज्य भी नहीं रह सकता। राज्य व्यवस्था का आधार न्याय नहीं, भय है। भय को आप निकाल दीजिए, और राज्य-विध्वंस हो जायगा, फिर अर्जुन की वीरता और युधिष्ठिर का न्याय भी उसकी रक्षा नहीं कर सकता। सौ-दो सौ निरपराधियों का जेल में रहना राज्य न रहने से कहीं अच्छा है। मगर मैं उन विद्रोहियों को निरपराध क्यों कर मान लूँ? कई हजार आदमियों का सशस्त्र एकत्र हो जाना यह सिद्ध करता है कि वहाँ लोग विद्रोह करने के विचार से ही गये थे।"
विनय—"किंतु जो लोग उसमें सम्मिलित न थे, वे तो बेकसूर हैं?"
सरदार—"कदापि नहीं, उनका कर्तव्य था कि अधिकारियों को पहले ही से सचेत कर देते। एक चोर को किसी के घर में सेंद लगाते देखकर आप घरवालों को जगाने